ऋषिकेश (दीपक राणा) । परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के पहले सभी को योगमय होने का संदेश देते हुये कहा कि वैश्विक शान्ति, समरसता, सद्भाव और सहिष्णुता के लिये योगमय जीवन जीना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि योग, विवाद और विशाद का नहीं बल्कि सहयोग और समाधान का विषय है। योग केवल आसन और प्राणायाम तक सीमित नहीं है बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करते हुये मोक्ष तक पहुंचाता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि प्राचीन समय में योग भारतीय जीवन पद्धति का एक महत्वपूर्ण अंग था। ऋग्वेद के अनुसार विद्वानों का कोई भी कर्म योग के बिना पूर्ण नहीं होता है। योग के माध्यम से ही प्रकृति से जुड़ा जा सकता है क्योंकि प्रकृति की शक्ति अद्भुत है। प्रकृति के त्रिगुण सत्व, रज और तम का समाहार योग के माध्यम से ही होता है। सत्तोगुण, शुद्धता, शुचिता व पवित्रता का प्रतीक है। रजोगुण, गतिशीलता का प्रतीक है तथा तमोगुण अज्ञान व अन्धकार का प्रतीक है। योग के माध्यम से आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। वास्तव में योग वह प्रकाश है जो एक बार जला दिया तो कभी कम नहीं होता। जितना अच्छा आप अभ्यास करेंगे लौ उतनी ही उज्जवल होगी।’’ आज योग की लौ को हर दिल में जगाने की जरूरत है।
योग में भारत की समृद्ध परम्परायें, इतिहास, विरासत और दर्शन समाहित है। योग तो जीवन को जागृत करने का; जीवन को ऊर्जावान बनाने का विज्ञान है। यह यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, समाधि के माध्यम से ब्रह्माण्ड की चेतना के साथ विलय होकर मनुष्य को चरम अवस्था तक पहुंचाने का विज्ञान है।
योग, केवल शरीर की फिटनेस के लिये नहीं है बल्कि इसे सही प्रक्रिया के साथ किया जाये तो यह शरीर और मन का ब्रह्माण्ड के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। प्रमुखतः कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और क्रिया योग के माध्यम से व्यक्ति के शरीर, मन, संवेदना और संवेग को नियंत्रित किया जा सकता है। योग, शब्द में वह शक्ति है जो पूरे विश्व को एक सूत्र में बांध सकती है तथा योग, धरती पर विश्व बन्धुत्व को स्थापित करने की सामथ्र्य रखता है। आईये योग करें , रोज करें, मौज करें ।