तू जो भी है
सरकारी गैर-सरकारी या निजी,
क्यों नहीं
बैठा देता
सीखने या सिखाने वालों की
बहन, माँ और बेटियों को नंगा
चित्रकला के लिए।
बेहतर हो
सीखने वालों से कहो
अपने-अपने घरों में
माताओं बहनों दादियों के निर्वस्त्र
कलाचित्र लाएं उकेरकर
उनमें जीवंत रंग भरकर।
छिछोरो
बदतमीज और नीच लोगो
यदि कला
इतनी ही पाक-साफ है तो
अपने-अपने घरों से करो शुरुआत,
मत नंगा करो
गरीब मातृ-शक्ति को
शिक्षा के नाम पर।
डूब मरो
दुष्टो
डूब मरो
चुल्लू भर पानी में।
तुम गरीबों की
आर्थिक सहायता के नाम पर
उनकी विवशताओं का सौदा कर
उन्हें
मानसिक वेश्याएं बना रहे हो
जो शारीरिक वेश्याओं से बदतर हैं।
( Virendra Dev Gaur – Chief editor )