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-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
दून घाटी में जल संरक्षण का अभियान चलाए जाने का समय आ गया है। दून घाटी में जब तक पर्याप्त जल संसाधन रहेंगे तब तक दून घाटी जवान रहेगी। यह अध्ययन का विषय है कि दून घाटी में जल संरक्षण के मोर्चे पर कितने स्वैच्छिक संगठन काम कर रहे है। क्या कोई स्वैच्छिक संगठन काम कर भी रहा है। स्वैच्छिक संगठन स्वयं अपने आप में पहेली बनकर रह गये हैं। बहरहाल, उत्तराखण्ड की सरकार को केन्द्र से मिलकर जल संरक्षण का काम शुरू करना चाहिए। अगर आप दून घाटी की मर चुकी नदियों को जिन्दा नहीं कर सकते तो अधमरी नदियों को तो जवान कर सकते हो। यही तो सरकार का असली काम है। यह काम बहुत जरूरी है। देहरादून अनन्त काल तक फलता-फूलता रहे इसके लिए यह जरूरी है कि बिना समय गँवाए जल संरक्षण शुरू कर देना चाहिए। ऐसा करके न केवल अधमरी नदियाँ फिर से जवान हो जाएंगी बल्कि नाले बन चुकी नदियाँ भी साफ पानी देने लगेंगी।
इसके लिए भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन होना जरूरी है। नदी नालों पर मकानों का कब्जा हो चुका है। जितना कब्जा हो चुका है इससे आगे बात न बढ़ने दी जाए। नदियों और नालों के जन्मस्थान पर सघन जंगल लगाए जाए। भवन निर्माण के लिए नए नियम कानून बनाए जाएं। इन नियम कानूनों से छेड़-छाड़ करने वालो को जेल भेजा जाए। अगर हम भविष्य की नहीं सोच सकते तो हम विकास के नाम पर जो कुछ कर रहे हैं वह अल्पजीवी सिद्ध होगा। उत्तराखण्ड की सरकार के पास बहुत अवसर हैं खुद को साबित करने के। दून घाटी में जल संरक्षण पर अच्छा काम होने के फलस्वरूप ज़मीन के अन्दर पर्याप्त पानी मौजूद रहेगा। दून घाटी के लोगों को भविष्य में भी पीने के पानी का संकट नहीं सताएगा।