ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, लेखक, समाज सुधारक, प्रखर चिन्तक, ओजस्वी वक्ता, दूरदर्शी राजनेता और हिंदुत्व दर्शन के सूत्रधार वीर सावरकर जी की पुण्यतिथि के पावन अवसर पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि वीर सावरकर जी ने भारतीयों को स्वतंत्रता आन्दोलनों में सहभाग हेतु उत्साहित करने हेतु अद्भुत योगदान दिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वीर सावरकर जी ने हासिये पर खड़े औरस्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर जी (वीर सावरकर) की पुण्यतिथि पर विशेष वीर सावरकर जी भारत की एकता और अखंडता के पक्षधर।।स्वामी चिदानन्द सरस्वती परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, लेखक, समाज सुधारक, प्रखर चिन्तक, ओजस्वी वक्ता, दूरदर्शी राजनेता और हिंदुत्व दर्शन के सूत्रधार वीर सावरकर जी की पुण्यतिथि के पावन अवसर पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि वीर सावरकर जी ने भारतीयों को स्वतंत्रता आन्दोलनों में सहभाग हेतु उत्साहित करने हेतु अद्भुत योगदान दिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वीर सावरकर जी ने हासिये पर खड़े और उपेक्षित लोगों के उत्थान करने के साथ ही उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये अथक प्रयत्न किये। उन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव, छूआछूत को समाप्त करने और जाति के आधार पर व्यवसाय करने की सोच में सुधार करने हेतु अथक प्रयत्न किये। वीर सावरकर जी ने तत्कालिन भारतीयों को भारत के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराने के साथ ही उनमें स्वतंत्रता की आस और विश्वास जगाने का प्रयास किया। उनका मानना था कि भारतीय जनता अपने गौरवशाली अतीत को जाने, अपनी जड़ों से जुडें, ऋषियों के संधर्ष और अडिग संकल्प को जाने तो हर व्यक्ति की चेतना जागृत होगी और चेतना जागृत कर उनकी सोच व समझ को विकसित किया जा सकता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वीर सावरकर जी भारत की एकता और अखंडता के पक्षधर थे। वे विविधता में एकता चाहते थे। उनका मानना था कि विभिन्न संस्कृतियों के लोग मिल-जुलकर रहें और एक ऐसा भारत निर्मित हो जो समावेशी व गतिशील हो। वीर सावरकर जी भारत में राष्ट्रवाद का शंखनाद करने वाले अग्रज क्रांतिकारी थे। उनकी पुस्तक इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल तत्कालिन युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत थी। साथ ही वे वेदों के अध्ययन और जानने का अधिकार भी सभी को देने के पक्षधर थे, अर्थात वे समाज के फैले भेदभाव को समूल नष्ट करना चाहते थे। वास्तव में आज विविधता में एकता और भेदभाव मुक्त भारत के निर्माण के लिये प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा यही वीर सावरकर जी को हम सभी की ओर से सच्ची श्रद्धाजंलि होगी। उपेक्षित लोगों के उत्थान करने के साथ ही उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये अथक प्रयत्न किये। उन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव, छूआछूत को समाप्त करने और जाति के आधार पर व्यवसाय करने की सोच में सुधार करने हेतु अथक प्रयत्न किये। वीर सावरकर जी ने तत्कालिन भारतीयों को भारत के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराने के साथ ही उनमें स्वतंत्रता की आस और विश्वास जगाने का प्रयास किया। उनका मानना था कि भारतीय जनता अपने गौरवशाली अतीत को जाने, अपनी जड़ों से जुडें, ऋषियों के संधर्ष और अडिग संकल्प को जाने तो हर व्यक्ति की चेतना जागृत होगी और चेतना जागृत कर उनकी सोच व समझ को विकसित किया जा सकता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वीर सावरकर जी भारत की एकता और अखंडता के पक्षधर थे। वे विविधता में एकता चाहते थे। उनका मानना था कि विभिन्न संस्कृतियों के लोग मिल-जुलकर रहें और एक ऐसा भारत निर्मित हो जो समावेशी व गतिशील हो। वीर सावरकर जी भारत में राष्ट्रवाद का शंखनाद करने वाले अग्रज क्रांतिकारी थे। उनकी पुस्तक इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल तत्कालिन युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत थी। साथ ही वे वेदों के अध्ययन और जानने का अधिकार भी सभी को देने के पक्षधर थे, अर्थात वे समाज के फैले भेदभाव को समूल नष्ट करना चाहते थे। वास्तव में आज विविधता में एकता और भेदभाव मुक्त भारत के निर्माण के लिये प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा यही वीर सावरकर जी को हम सभी की ओर से सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।
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