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क्या मुख्यमंत्री और पर्यटन मंत्री राज्य की धर्माटन-क्षमता को निखारना चाहेंगे?

बारहमासा धर्माटन के लिये अकेले चार-धाम से नहीं चलेगा काम

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उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जिसकी महिमा ‘चार-धाम प्रदेश’ से कई गुना महान है। इस राज्य के पास जहाँ एक ओर दर्जनों मान्य प्रयाग हैं वहीं दूसरी और दिव्य तीर्थों की तार्थमाला है। यदि इन तमाम तीर्थ स्थलों को इनकी गरिमा के साथ महत्व दिया जाए तो यह प्रदेश तीर्थाटन का अग्रणी प्रदेश बन जाए और यहाँ बारहमासा तीर्थाटन की ऐसी चहल-पहल का श्री गणेश हो जाए जिसका इस प्रदेश को नैसर्गिक हक़ भी है। इस प्रदेश को महज चार-धाम प्रदेश की ख्याति मिल जाना पर्याप्त नहीं है। श्री हेमकुंड साहिब की गरिमा को सही तरीके से समझा जाए तो यह प्रदेश पाँच धाम प्रदेश का गौरव हासिल कर सकता है। हिृशिकेश (ऋषिकेश) और हरिद्वार के व्यापक प्रभाव को तो सभी जानते-मानते हैं किन्तु हम यह समझने को तैयार नहीं कि श्री हेमकुंड साहिब एक ऐसा पावन स्थल है जहाँ सात पहाड़ियों से घिरी झील के किनारे त्रेता युग में श्री राम के भाई लक्ष्मण ने और द्वापर युग में पांडवों ने तपस्या की थी। दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने भी अपने पूर्व-जन्म में यहाँ घोर तपस्या की थी। उन्होंने पांडवों और पांडवों से पहले रामयुग में श्री लक्ष्मण से प्रेरणा पाकर ही यहाँ तपस्या की थी। उनके पूर्व जन्म का नाम दुष्टदमन था। यही नहीं कुमाऊँ क्षेत्र में हमारे पास पावन धामों की प्रचुर धरोहर है। नानकमत्ता, जागेश्वर मन्दिर समूह और कटारमल मन्दिर के अलावा कई प्रतिष्ठित धाम हैं जिन्हें हम वह सम्मान नहीं दे पाए हैं जिसके ये धर्मस्थल हकदार हैं। गढ़वाल मंडल विकास निगम और कुमाँऊ मंडल विकास निगम में अभी तक कार्य-संस्कृति का विकास नहीं हो सका है ऐसे में ये संस्थान इन देवालयों और दिव्य-स्थलों के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को प्रकाश में कैसे ला पाते।
प्रदेश के पास पर्यटन मंत्रालय है मौजूदा समय में धर्म-प्रवीण और धर्म-प्रतिष्ठानों की महत्ता को समझने वाले श्री सतपाल महाराज मंत्रालय की बागडोर सँभाले हुए हैं। केन्द्र में चौबीसों घंटे देश के लिए काम करने वाला प्रधानमंत्री है। बगल में धर्माधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अधिपत्य है। यदि ऐसे स्वर्ण काल में प्रदेश का धर्माटन यशस्वी न हो पाया तो फिर कभी सम्भव नहीं लगता। श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने दसम ग्रंथ के एक अंश ‘विचित्र चरित्र’ में अपने पूर्वजन्म का उल्लेख करते हुए कहा है- ‘हेमकुंट परबत है जहाँ। सप्तश्रृंग सोभित है तहाँ।। तहं हम अधिक तपस्या साधी। महाकाल कालिका आराधी।।’’ अतः हमें समझना होगा कि गुरु गोबिंद सिंह पूरे देश को अपनी माता कहकर सम्बोधित करते थे। वे विराट मानव थे। वे संकीर्णताओं से उसी प्रकार ऊपर उठे हुए थे जैसे भगवान श्री राम। यदि हम हेमकुंड नामक पावन स्थल को पाँचवें धाम की गरिमा दें तो प्रदेश का ही नहीं अपितु पूरे देश का कल्याण होगा। लोग संकीर्णताओं के दायरे से ऊपर उठेंगे और प्रदेश के विकास को अकल्पनीय गति मिलेगी। गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना देश में आतताइयों के विनाश के लिए और पूरे देश की रक्षा के लिए की थी। अतः उन्हें समझे जाने की ज़रूरत है और हेमकुंड साहिब का विकास पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए त्रेता युग और द्वापर युग की अमूल्य धरोहर के रूप में किया जाना चाहिए।
यह प्रदेश केवल धर्माटन के बलबूते आर्थिक प्रगति के कई सोपान तय कर सकता है। अगर पौंटा-साहिब जैसा धर्म-स्थल हिमाचल प्रदेश की सीमा में है तो भी उत्तराखंड इस पावन धर्म-स्थल का लाभ उठा सकता है। दोनों प्रदेश इस स्थल का मिलकर भी विकास कर सकते हैं और आर्थिक लाभ में भी न्यायसंगत भागीदारी तय कर सकते हैं। पाँवटा (पौंटा) साहिब में तो गुरु जी करीब तीन साल रहे थे। तब वे एक बार झंडा-साहिब देहरादून भी पधारे थे हालाँकि वे धर्म की रक्षा के लिए देहरादून पधारे थे और अपना नैतिक दायित्व निभाकर पाँवटा साहिब लौट गए थे। कुमाँऊ मंडल में भी धर्म के बड़े-बड़े पावन स्थलों की कमी नहीं है। वहाँ नानकमत्ता को अधिक से अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। जागेश्वर मन्दिर समूह और कटारमल मन्दिर स्थल के अलावा वहाँ कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। केवल चार-धाम पर फोकस रखने से राज्य का हित सम्भव नहीं है। श्री बदीनाथ, श्री केदारनाथ, पावन गंगोत्री और पावन यमुनोत्री धाम की महत्ता को भी बढ़ाए जाने की जरूरत है। पूरे प्रदेश के धार्मिक स्थलों का सर्किट तैयार कर हम देश-विदेश के धर्माटकों को बारहमासा धर्माटन का श्रीलाभ सुलभ कर सकते हैं हमारे पास सम्भावनाओं का चमत्कारी भंडार यथार्थ में उपलब्ध है। यही नहीं बल्कि हमें देहरादून नगर की सीमा पर स्थित श्री लक्ष्मण मन्दिर और हिृषिकेश (ऋषिकेश) में स्थित श्री भरत मन्दिर के महत्व को भी समझना होगा।
बारहमासा सड़क परिवहन (ऑल वेदर रोड) के तैयार हो जाने पर हम तभी पूरे प्रदेश को लाभान्वित कर पाएंगे जब हम धर्माटन की सम्भावनाओं को एक दूसरे से पिरो पाएंगे। राज्य में धर्माटन का विपुल भंडार बिखरा पड़ा है। केन्द्र के समक्ष यदि इन सम्भावनाओं पर आधारित प्रस्ताव पेश किया जा सके तो पूरे देश का भला होगा। प्रदेश को देश में एकता के प्रचार-प्रसार का गौरव भी हासिल हो सकेगा और धर्माटन से रोजगार के अवसरों में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी होगी। प्रदेश में स्वावलम्बन की बहार आ जाएगी और पलायन की समस्या का स्थायी समाधान भी सम्भव हो जाएगा। इस समय राज्य के पास श्रीमान् उत्पल कुमार सिंह जैसे जुझारू मुख्य सचिव और श्रीमान् दिलीप जावलकर जैसे कर्मठ पर्यटन सचिव मौजूद है जिनका भरपूर लाभ राज्य के हित में उठाया जाना चाहिए। धर्माटन एक ऐसा क्षेत्र है जो पूरे प्रदेश की सूरत बदल सकता है। बशर्ते, प्रदेश के पर्यावरण और पारिस्थितिकीय संतुलन से ध्यान नहीं हटना चाहिए।

                                                                                                               -सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून

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