उत्तराखण्ड पुलिस की वीरांगनाएं छक्के छुड़ाएंगी कोरोना राक्षस के
आँगनवाड़ी मॉडल आँफ सक्सेस क्या धरातल पर सक्रिय है?
Trivendra Singh Rawat
Chief minister of Uttarakhand
उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार के पास आज्ञाकारी और अनुशासित पुलिस फोर्स है जो संकट के इस दौर में बड़ी सूझबूझ के साथ कोरोना वीर होने का धर्म निभा रही है। उत्तराखण्ड की जटिल भौगोलिक स्थिति कुछ हद तक राज्य सरकार की मददगार साबित हो रही है। राज्य के समस्त स्वास्थ्यकर्मी एवं चिकित्सक अपना फर्ज ढंग से निभा रहे है। राजकीय दून अस्पताल के डॉक्टर टम्टा स्वयं नासाज होते हुए भी एक प्रचंड कोरोना वीर की तरह अपनी फर्ज अदायगी को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। राज्य के पुलिसकर्मी और अफसर दिल लगाकर विपदा के खिलाफ जंग छेडे़ हुए है। महिला पुलिसकर्मी जगह-जगह सुरक्षित फेस-मास्क बनाकर कोरोना के खिलाफ जंग को निर्णायक बनाने में मदद कर रही हैं। जिस तरह दिल्ली की महिला पुलिस गर्भवती महिलाओं को अस्पतालों तक पहुँचाने में फुर्ती दिखा रही है और ऑफिस समय के बाद कहीं फेस-मास्क बना रही हैं तो कभी जरूरतमंदो के लिए भोजन बना रही है। इसी तर्ज पर उत्तराखण्ड की महिला पुलिस भी परीक्षा की इस घड़ी में किसी से पीछे नहीं है। ऋषिकेश की एक महिला पुलिस अफसर ने कोरोना से जारी जंग में अपने फर्ज को जी-जान से अंजाम देने के लिए अपनी प्रस्तावित शादी की तिथि को आगे बढ़ा दिया है। इन तथ्यों से ये साबित हो रहा कि डॉक्टर, नर्स, अधिकारी, पुलिस अफसर, सफाई कर्मी सभी एकजुट हो कर कोरोना जंग में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे है। प्राप्त जानकारी के अनुसार आँगनवाड़ी की माताओं और बहनों को सरकार ने कोरोना के खिलाफ जाग्रति बढ़ाने की जिम्मेदारी दी है। इन्हे कहा गया है रोज दस लोगों को ये कोरोना को लेकर हर सम्भव जानकारी दें ताकि कोरोना की कड़ियों को तोड़कर कोरोना को पस्त किया जा सके। देखने में यह आया है कि कुछ आँगनवाड़ी की नायिकाएं महज खानापूर्ति में लगी हैं। ऐसा लगता है कि इन देवियों को खुद ही कोरोना के मामले में जाग्रति का अभाव है। कोरोना वायरस की गंभीरता को समझने वाली कोई भी कार्यकत्री लापरवाही नहीं कर सकती। केवल दस लोगों की फोटो भेज देने से यह सत्यापित नहीं हो जाता कि ये देवियाँ अपने संवेदनशील दायित्व को निभा रही है। अन्यथा, आँगनवाड़ी की नारी शक्ति जाग्रति जगाने में क्रान्ति कर सकती है। संकट की इस घड़ी में आँगनवाड़ी की समस्त देवियाँ राज्य की बहुत मदद कर सकती है। इनके द्वारा बढ़ाई गई जाग्रति बहुत कारगर साबित हो सकती है।
बहरहाल, राज्य की पुलिस जिस तरह संवेदनशील होकर अपना दायित्व निभा रही है वह तारीफ के लायक है। किन्तु, जाने-अंजाने होने वाली कोई भी ढिलाई पूरे राज्य की सरकारी मशीनरी की मेहनत पर पानी फेर सकती है। हमने पहले भी सरकार को सुझाव दिया था कि सरकार पुलिस के भयानक बोझे को कम करने के लिए सिविल डिफेन्स, एनसीसी और होमगार्ड जैसी संस्थाओं का बेहतरहीन इस्तेमाल कर न केवल इन्हे भविष्य में आने वाले किसी खतरे से निपटने के लिए तैयार कर सकती है बल्कि मौजूदा संकट को भी छिन्न-भिन्न कर सकती है। हमारे लिए आईएएस अफसर, पीसीएस अफसर, पुलिस अफसर, पुलिस कर्मचारी, फायर बिग्रेड का अमला और हमारे समस्त स्वच्छकार बहुत मायने रखते है। इसलिए इन पर आन पड़े जरूरत से ज्यादा बोझे को हल्का करने के लिए गैरसरकारी संस्थाओं का सुरक्षित सहयोग लेना तर्कसंगत है। वैसे भी उत्तराखण्ड की सीमा ड्रैगनस्तिान से मिलती है और ऐसे आपातकाल में हम किसी दूसरे आपातकाल के लिए तैयार रहने की क्षमता भी जुटा सकते हैं। राज्य सरकार दूरंदेशी से काम कर रही है और राज्य की मशीनरी सचेत है किन्तु उत्तराखण्ड की क्षमता असीम है। इस असीम क्षमता को निखारकर राज्य सरकार पूरे देश के सामने एक उदारहण बनकर सामने आ सकती है। अगर उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार अपनी पूरी क्षमताओं का इस्तेमाल कर सकी तो हो सकता है उत्तराखण्ड देश में पहला ऐसा राज्य हो जो कोरोना को परास्त करने में सफल रहे और हमारे राज्य से विजय अभियान का श्री गणेश सम्भव हो। यही नहीं बल्कि राज्य सरकार आवश्यकता पड़ने पर सरकारी अध्यापकों को जाग्रति अभियान में शामिल कर सकती है। ऐसा करके अध्यापकों की निष्क्रियता को सक्रियता में बदला जा सकता है। वैसे भी शिक्षक को पुलिस की तरह कर्मठ होना ही चाहिए। हालाँकि, यह सब हालातों पर निर्भर करता है और राज्य के नेतृत्व को ही उचित समय पर उचित फैसला लेना पड़ता है। जिस तरह उत्तराखण्ड पुलिस के डीजीपी अनिल रतूड़ी महोदय ने तबलीगियों को उचित समय में चेतावनी देने का काम किया था वह सराहनीय था। ज़ाहिर है कि संकटकाल में समय पर लिया गया फैसला ही कारगर होता है। हालाँकि, तबलीगी जमात के लोग बहुत कट्टर होते हैं इसलिए इस मोर्चे पर किसी भी तरह की चूक उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए और भी घातक साबित हो सकती है। लिहाजा, सरकार मुस्तैद मीडिया के साथ मिलकर इतिहास रच सकती है। अंत में यही कहा जा सकता है कि जा पर किरपा होय राम की पत्थर भी तिर जाते हैं।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, देहरादून
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