ट्रिपल तलाक बैन, लेकिन आगे अब सरकार के सामने होंगी ये चुनौतियां
(नेशनल वार्ता ब्यूरो)
तीन तलाक को लेकर मुस्लिम महिलाएं मुखर हो चुकी हैं। वे तीन तलाक से लिखी अपनी बरबादी अब कतई बर्दाष्त करने के लिए तैयार नहीं थी, यही उनकी सोच आर पार की लड़ाई लड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इतंजार करती आ रही हैं। करीब 1400 सालों से इस कुप्रथा को जड़ से समाप्त कर अब वे स्वच्छन्द में सांस लेना चाहती हैं। बिना बात चीत के तीन बार तलाक कह देना उनकी जिन्दगी षौहर और परिवार से अलग करने में देर नहीं होती थी। फिर वे पहाड़ जैसी जिन्दगी को कैसे गुजारें यह उनके लिए भारी होता था। लेकिन उन्हें भरोसा था कानून पर कि एक न एक दिन न्याय जरूर मिलेगा। इस कुप्रथा से निजात मिलने के लिए महिलाएं न्याय की षरण में पहुंची, आखिर किरण की उम्मीद नजर आयी। मौलवी मौलानाओं का हल्ला और विरोध जारी रहा, वे नहीं चाहते हैं कि तीन तलाक समाप्त हो, क्योंकि इसकी आड़ में वे सदियों से महिलाओं पर जुल्म ढ़हाते आ रहे हैं। फिर भी अगर तीन तलाक पर प्रतिबंध लगता है तो उन्हें अपनी जिन्दगी के हर क्षण मंे सुखद लगेगा। पूर्व से चली आ रही हैं ऐसी कुप्रथाओं को समाज से समाप्त करना चाहिए, तथा सभी स्त्री-पुरूश को एक समान जीने का हक मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। साथ ही केन्द्र सरकार पर छह महीने के भीतर क़ानून बनाने का महत्वपूर्ण भार भी डाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक का असंवैधानिक बताया। पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की जिसमें दो जज तीन तलाक के पक्ष में थे वहीं तीन इसके खिलाफ। बहुमत के आधार पर तीन जजों के फैसले को संविधान पीठ का फैसला माना गया। पीठ में चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरिएन जोसेफ, आरएफ नरीमन, यूयू ललित और एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे। तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम सुनवाई ११ मई को शुरु हुई थी। जजों ने इस केस में १८ मई को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया था. खास बात ये है कि जस्टिस नरीमन, ललित और कुरियन ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया। जबकि जस्टिस नजीर और चीफ जस्टिस खेहर ने तीन जजों के उलट राय रखी। तीन तलाक बेहद गंभीर मसला है और भारतीय समाज के एक बड़े तबके को प्रभावित करता है। ये भी सही है कि तीन तलाक की आड़ महिलाओं के साथ अन्याय भी होता रहा। अब उम्मीद की जाये कि संसद इस पर बेहतर क़ानून बनाकर मिसाल पेश करे ताकि आधा आबादी के हक-हकूक की दिशा में एक कदम और बढ़े. साथ ही भारतीय समाज के दूसरे तबके की महिलाओं को भी अपने ऊपर होने वाले ज़ुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करने का और हौसला मिले। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के प्रति देेष की हर महिला खुष है और वे अपने हक-हकूक के लिए कानून पर भरोसा जताया है।