देहारदून । प्रदेश सरकार हिमालयी क्षेत्रों में दैवीय आपदा के खतरे से निपटने के लिए पुख्ता सूचना तंत्र चाहती है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उपकरणों के न होने से मौसम के सटीक पूर्वानुमान और चेतावनी जारी करने में सरकार को परेशानी पेश आ रही है। सरकार ने इस संबंध में नीति आयोग से मदद की गुहार लगाई है। आयोग की ओर से इस संबंध में सकारात्मक संकेत राज्य को मिले हैं। उत्तराखंड राज्य का हिमालयी क्षेत्र आपदाओं के प्रति अति संवेदनशील है। खासतौर पर भूकंप, भूस्खलन, बादल फटना, त्वरित बाढ़ और हिम-स्खलन प्रमुख हैं। भूकंप के साथ बड़ी आपदा मौसम संबंधी हैं। बीते कुछ वर्षों में इन आपदाओं में तेजी आई है। ऐसे में वर्तमान में उपलब्ध तकनीकी ज्ञान और विशेषज्ञता से मौसम जनित आपदाओं का पूर्वानुमान लगाना संभव है। प्रदेश सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ऐसे उपकरणों की उपलब्धता न होना है। इस वजह से संबंधित जिम्मेदार संस्थाएं सटीक चेतावनी जारी नहीं कर पा रही हैं। चमोली जिले में हालिया आपदा में ऐसा ही हुआ है। हालांकि सरकार ने मौसम विभाग के सहयोग से मौसम की जानकारी के लिए उपकरण स्थापित किए हैं। अब राज्य सरकार ने उच्च हिमालयी क्षेत्र में झीलों से संभावित बाढ़ के खतरे के मद्देनजर केंद्र सरकार से सहयोग मांगा है। अलग से ग्लेशियोलाजी सेंटर की मांग की जा चुकी है। राज्य सरकार इस मुद्दे को नीति आयोग के समक्ष उठा चुकी है। सरकार उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आपदा के मद्देनजर मौसम संबंधी जरूरी आंकड़े एकत्रित करने का मजबूत तंत्र स्थापित करना चाहती है। ऐसे में संकेत ये है कि प्रदेश में आपदा से लड़ाई को तंत्र विकसित करने में नीति आयोग राज्य सरकार की मदद कर सकता है।