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गणतंत्र दिवस मनाना है

सर्द हवाओ दुश्मन से कह दो सरहद का धर्म जान से प्यारा है
भारत की सरजमीं पर जब तक पहरा दमदार हमारा है।

भारत के जन-मन में
ज़हर क्यों भरते हो
जात-पात की धुन में
पल-पल क्यों रहते हो
क्यों देश को तुम
परिवार न कहते हो
सबके कल्याण में अपना
क्यों नुकसान समझते हो
हर कमजोर की सेवा में
क्यों नहीं तुम जुटते हो
क्यों जात-पात की बातों में
उलझे तुम रहते हो
देश की कमजोरियों से
क्यों तुम मिल कर नहीं लड़ते हो
जात-पात के रंग-ढंग में
पल-पल बहके क्यों रहते हो
क्यों नहीं तुम कभी
सच यह कहते हो
देश से गरीबी-लाचारी का
हर अंश मिटाना है
हर आदमी को हमें
आत्मनिर्भर बनाना है
भारत के गौरव पर
तन-मन ये लुटाना है
गणतंत्र के लिए
जीना मर जाना है
कभी जीवन में तुमने
क्या यह ठाना है
या जात-पात करते-करते
धरती से उठ जाना है।
देखो गौर से देखो
हमारी सेना हमारी रक्षा में
कैसे-कैसे बलिदान
करने को तत्पर रहती है
हमारी क्षुद्र शैतानियों पर लेकिन
हमारे संयम की कैंची नहीं चलती है।
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार


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