धामी के हाथ ही तो थी कमान
-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
उत्तराखण्ड के लोग चाह रहे हैं धामी की वापसी। केंद्र के दिग्गज भाजपाई भी इसी बात पर दे रहे हैं जोर। भावनाएं भी धामी के पक्ष में ही हैं। हालाँकि मामला इतना आसान नहीं। किन्तु ये भी सच है कि उत्तराखण्ड के लोगों को धामी से कोई शिकायत नहीं। खटीमा विधानसभा क्षेत्र का मामला कुछ अलग रहा। वहाँ के लोगों की नाराजगी को उत्तराखण्ड की नाराजगी नहीं माना जा सकता। फिर, अंतिम चार माह में धामी ने बिगड़े हालातों को काबू में करने की पूरी कोशिश की। वर्ना, पहले दो मुख्यमंत्रियों ने तो भाजपा की रवानगी का पुख्ता बंदोबस्त कर दिया था। पहले मुख्यमंत्री ने उत्तराखण्ड के लोगों को बहुत निराश किया। उनका व्यवहार मुख्यमंत्री के अनुकूल नहीं था और उनकी क्षमता को औसत से नीचे आँका गया था। दूसरे मुख्यमंत्री का ध्यान राज्य की समस्याओं की ओर न होकर लड़कियों के पहनावे की ओर ज्यादा था। वे यह मानकर चलते हैं भारत ब्रिटेन का नहीं अमेरिका का गुलाम था। हरीश रावत यानि हरदा ने तंज भी कसा था कि मुख्यमंत्री के इतिहास का ज्ञान धन्य है। इस सब के मद्देनजर तीसरे मुख्यमंत्री यानि पुष्कर सिंह धामी ने कोई चमत्कार तो नहीं किया लेकिन मुख्यमंत्री की गरिमा को बनाए रखा और ताबड़तोड़ कुछ फैसले भी किए। लोगों को लगा कि धामी में दम है। उन्हें बहुत कम समय मिला फिर भी उन्होंने भाजपा के गिरते ग्राफ को गजब की फुर्ती से थाम लिया। इस खूबी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वे एक अच्छे मुख्यमंत्री साबित हो सकते हैं। लोग भी चाहते हैं कि उन्हें मौका मिलना चाहिए। हालाँकि, जो भी मुख्यमंत्री बनाया जाएगा उसे बहुत बड़ी चुनौती से निपटना होगा। उसे रामकृष्ण प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आसपास फटकना ही होगा। क्षमता का परिचय देना ही होगा। -सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार, देहरादून।