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रूद्राभिषेक से होता है वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार: स्वामी चिदानन्द

ऋषिकेश (दीपक राणा) । परमार्थ निकेतन गंगा तट पर आज स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में परमार्थ गुरूकुल के आचार्यों और ऋषिकुमारों ने रूद्राभिषेक किया। इस अवसर पर स्वामी जी ने रूद्राभिषेक के साथ नदियों के अभिषेक अर्थात नदियों को स्वच्छ, प्लास्टिक व प्रदूषण मुक्त रखने का संदेश दिया। इस अवसर पर अमेरिका, थाईलैंड, हांगकाग, इग्लैंड और ब्राजील से आये भक्तों ने सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारा राष्ट्र भारत पर्वो व त्यौहारों का राष्ट्र है। भारत की विविधता में एकता ही उसकी विशेषता है। यहां पर विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं और रंगों की विविधता होने के बाद भी सभी मिलकर त्यौहार मनाते है। भारत तीर्थों की भूमि है; पर्वों की भूमि है और पर्व हमें एक – दूसरे से जोड़ने और जुड़ने का संदेश देते हैं।
भारतीय परम्परा और हिंदू धर्म के तीज-त्यौहारों का अपना विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सोमवार भगवान भोलेनाथ को समर्पित दिन है। सावन माह में प्रकृति का सौंदर्य, पुनर्जन्म, आध्यात्मिक ऊर्जा के संचार और आत्मिक शक्ति के विस्तार का दिव्य समय है। यह माह पूरब की संस्कृति, पवित्रता, सात्विकता, पोषकता और नवजागरण का संदेश देता है। प्रकृति का पुनर्जन्म और नवांकुर इसी माह से आरम्भ होता है। बाहर के वातावरण में हरियाली संर्वद्धन और आन्तरिक वातावरण में चैतन्य का जागरण होता है। साधक, उपवास, साधना और भक्ति के माध्यम से अपने अन्दर आध्यात्मिक दिव्य शक्तियों का जागरण करते हैं।
वास्तव में देखें तो श्रावण माह ही नहीं बल्कि हर घड़ी और हर क्षण भगवान शिव का ही है परन्तु श्रावण माह की अपनी महिमा है। इस माह में मेघ अपना नाद सुनाते हंै, प्रकृति का अपना राग उत्पन्न होता है और मानव में आध्यात्मिक ऊर्जा का स्फुरण होता है। आदि काल से ही इस माह मंे साधक, शाकाहारी जीवनचर्या अपनाकर प्रकृतिमय दिनचर्या के साथ प्रार्थना, पूजा, प्रेम, प्रभु के दर्शन की प्रतीक्षा और प्रभु का प्रसाद पाने हेतु साधनारत रहते थे।
श्रावण मास में साधक अपने अंतर्मन का नाद सुनने के लिये है वनों में और शिवालयों में जाकर साधना करते थे, कावड़ यात्रा उसी का प्रतीक हैं। श्रावण माह में मनुष्य विशेष रूप से अपनी अन्र्तचेतना से जुड़ सकते हैं, अपने स्व से जुड़ सकते हैं और शिवत्व को प्राप्त कर सकते हैं।
श्रावण माह में प्राकृतिक का सौन्दर्य जीवंत हो जाता है, कलकल करते झरनों का दिव्य नाद और धरती के गोद में छोटे-छोटे नन्हें बीजों से पौधों का जन्म होता है, उसी प्रकार मनुष्य के हृदय में भी सत्विकता से श्रद्धा का जन्म होता है। आज जरूरत है श्रद्धा से समर्पण की ओर बढ़ने की, आध्यात्मिकता से आत्मीयता की ओर बढ़ने की तथा शिव साधना के साथ शिवत्व को धारण करने की। आईये शिव से शिवत्व की ओर बढ़े और इस धरा को स्वच्छत, प्रदूषण और प्लास्टिक मुक्त बनाने का संकल्प लें।
इस अवसर पर सुश्री गंगा नन्दिनी त्रिपाठी, आचार्य दीपक शर्मा, आचार्य संदीप शास्त्री और परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार उपस्थित थे।

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