नई दिल्ली । जस्टिस रंजन गोगोई भारत के अगले मुख्य न्यायधीश होंगे। इस पोस्ट के लिए उनके नाम की सिफारिश वर्तमान मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने सरकार से की है। सूत्रों का कहना है कि जस्टिस गोगोई 3 अक्टूबर को शपथ ले सकते हैं। इसके बाद उनका कार्यकाल 17 नवंबर 2019 तक रहेगा। सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है। इससे पहले कानून मंत्रालय ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को अधिकारिक तौर पर पत्र लिखकर अपना उत्तराधिकारी तलाशने के लिए कहा था। परंपरा के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनाया जाता है। ऐसे में वरिष्ठता के आधार पर जस्टिस गोगोई का नाम सबसे आगे है। जस्टिस रंजन गोगोई को 28 फरवरी 2001 में गुवाहाटी हाई कोर्ट का जज बनाया गया था। इसके बाद 12 फरवरी 2011 को उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का मुख्य न्यायधीश बनाया गया। इसके बाद अप्रैल 2012 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में लाया गया। जस्टिस गोगोई असम के रहने वाले हैं। वह इस समय एनसीआर (नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन) अपडेट करने की प्रक्रिया की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट की प्रणाली पर सवाल उठाने वाले जजों में जस्टिस रंजन गोगोई भी शामिल थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के प्रशासन और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाया था।
वर्तमान सीजेआई को लेने हैं अहम फैसले -सीजेआई मिश्रा को ऐसे कई अहम मामलों में आदेश जारी करना है, जिनका पब्लिक पर गहरा असर होगा। उनमें से एक आधार का मामला भी है। इसमें कोर्ट को फैसला देना है कि क्या सरकारी आधार स्कीम संवैधानिक रूप से वैध है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह स्कीम नागरिक के उस निजता के अधिकार पर बेजा पाबंदियां लगाने वाली है, जिसे सुप्रीम कोर्ट मूल अधिकार दे चुका है। सरकार और आधार समर्थकों का कहना है कि यह स्कीम गरीबों को मिलने वाली सब्सिडी में घपला रोकने के लिए जरूरी है। केंद्र सरकार इसका इस्तेमाल असम में पड़ोसी देश के घुसपैठियों की पहचान के लिए वहां चल रहे एनआरसी अपडेशन प्रोग्राम में भी करना चाहती है। इन मामलों में बहुत कुछ चीफ जस्टिस के फैसले पर निर्भर करता है। चीफ जस्टिस केरल के सबरीमाला मंदिर में खास उम्र से ज्यादा की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी मामले की भी सुनवाई करेंगे। उन्हें अडल्टरी कानूनों की वैधानिकता से जुड़े मामले में भी फैसला देना है और देश में माइनॉरिटी एलजीबीटी समुदाय की किस्मत का फैसला करना है। चीफ जस्टिस मिश्रा ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। अदालत से बालिगों के बीच स्वेच्छा से बनने वाले सभी तरह के यौन संबंधों को न सिर्फ वैधता देने का अनुरोध किया गया है बल्कि यह भी कहा गया है कि उन्हें इज्जत के साथ जीने का अधिकार मिलना चाहिए।
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