बापू के हत्यारे कौन, कौन तोड़ेगा यह मौन
बापू को किस-किस ने मारा
सवाल यह गलत है
बापू को किस-किस ने नहीं मारा
सही है यह सवाल
बापू के शरीर को नाथूराम ने मारा
किन्तु, बापू की आत्मा को तो
हम सबने अपने-अपने ढंग से मारा
बापू की आत्मा बनी थी
बापू के विचारों से
बापू ने कहा था पार्टी का बदल दो नाम
क्या नाम बदला गया
यह बापू के विचारों पर पहला हमला था
बापू ने कह दिया था अपनी अन्तर-आत्मा से
शराब शरीर के साथ-साथ
आत्मा का भी कर देती है खात्मा
क्या हमने उनकी यह वेदना जानी
क्या उनकी बात हमने मानी
मदिरा हिंसा की जननी है
हमने बापू की चैचारिक हत्या की पग-पग पर
शूली पर चढ़ा दिया बेचारे गोडसे को
क्या हम सब शूली पर चढ़ाए जाने लायक नहीं
हम सबको तो डूब कर मर जाना चाहिए
अन्यथा, नाथूराम को कोसना छोड़ देना चाहिए
अरे! वह हम सब से अच्छा आदमी था।
(2)
जब हो चला था गोडसे को विश्वास
बापू देश के बँटवारे को मानसिक तौर पर हो गए तैयार
तभी गोडसे ने ठान लिया था वह करेगा बापू पर वार
क्योंकि बापू सबके अग्रणी थे
वे सबके पूजनीय थे
इसलिए गोडसे ने पकड़ा क्रूरता का रास्ता
आखिर पूरे देश से था बँटवारे का वास्ता।
क्या गोडसे का सोचना गलत था?
वह जानता था मजहबी बँटवारा कोई समाधान न था
क्या मजहबी बँटवारे के बाद विवाद सुलझ गया?
स्वीकारो, सच कि देश पहले से अधिक उलझ गया
क्योंकि जिहाद देश तोड़ता है
जिहाद नये-नये देश बनाता है
उसका मकसद है इसलाम का विश्व-विस्तार
वह आईएस आईएस बन जाता है
वह तालिबान बन जाता है
वह तबलीग बनकर कोरोना का हाथ थाम लेता है
वह गैर-इसलामी मुल्कों को खून के आँसू रुलाता है
शायद कुछ ऐसा ही कहना चाहती थीं साध्वी माता प्रज्ञा ठाकुर।
(3)
भारतवासियों को छोड़नी पड़ेगी शुतुर्मुर्गी चाल
सच से आँखे हटा लेने से सच रास्ते से हट नहीं जाता
इतिहास और सच से हर मोड़ पर है सामना हो जाता
जिहादी तबलीग ने भारत में कोरोना वायरस की बुनियाद डाली
जिहादाना साद ने अपने खुदा को खुश कर डाला
वह फियादीन बनने को है तैयार
भारत की सुरक्षा व्यवस्था को राई और खुद को समझता है वह पहाड़
देश अभी भी अनसुना कर रहा है उसकी देश-विरोधी दहाड़
ऐसे नाजुक दौर में भारत के कर्णधारों ने
मधुशालाओं के खोलकर पावन कपाट
चालीस दिनों की मेहनत पर लगा दी वाट
ऐसे उतारोगे कोरोना को मौत के घाट
जिहादी तबलीग की तैयार बुनियाद पर कोरोना की खड़ी करोगे क्या कुतुबमीनार
भारत के पिलाड़ियों! कोरोना करेगा तुम्हारा एक-एक कर संहार
भारत में तुम जैसे भोगियों का जीना है बेकार।
(4)
शादी के मात्र लगभग अठारह साल बाद
बापू ने तन-मन-धन से ले लिया था सन्यास
क्या यह सच जानने की कोशिश की हमने कभी
लगभग सन् 1900 से बापू पूरे मनोयोग से मानवता की सेवा करते रहे
दूसरों के लिए हर पल मरते-खपते रहे
वे एक तरह से आधुनिक गंगा पुत्र भीष्म बन गए
जो भारत के लिए जी रहे थे
धन से उनका मन कोसों दूर था
लेकिन हमने क्या किया उनके तपस्वी मन के साथ
हरारे-करारे नोटों में जड़ दिया बापू को
यह उनकी आत्मा पर किया गया सबसे भयानक प्रहार था
है किसी को इस हिंसा का अहसास
अरे! गोडसे को गाली देकर भला आदमी बनने का ढोंग छोड़ो
नोटों से बापू का थोपा गया अनैतिक रिश्ता तोड़ो
हो सके तो मुद्रा में पावन गौमुख का सुन्दर पर्यावरण-परक चित्र जोड़ो।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।