सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
बनवास के श्राप को वरदान मानकर
पिरोया था श्रीराम ने एक माला में भारत को
पहले विश्व युद्ध की भीषणता से त्रस्त
कुरूक्षेत्र के मैदान को
बदल दिया श्रीकृष्ण ने
विश्व धरोहर गीता की सुधा बरसाने वाली यज्ञशाला में
ये दो विश्व-विभूतियाँ
शक्ति ज्ञान और अध्यात्म का समूचा ब्रह्माण्ड हैं एक।
भारत वर्ष ने
इनके सांस्कृतिक-सामाजिक वैभव को
सतत आचरण में ढाला होता
तो हिन्दू सदैव अजेय-पराक्रमी बना रहता
हिन्दू की धरोहर का विघटन कदापि न होता
हिन्दू जिसे शुरू में आर्य कहा जाता था
वह सबसे पहले वैज्ञानिक उत्कर्ष के ऐवरेस्ट पर होता
कोई मक्कार मैक्समूलर हमें खोखला सिद्ध करने का दुस्साहस न करता।
परम श्रद्धेय मोहन भागवत जी आप
छली-कपटी राजनीति के बाड़ों में बँटी
राजनीति की जमात को एक कक्षा में बिठाने की
जो अभिनव और ऐतिहासिक स्वस्थ पहल करने की
युग परिवर्तनकारी सोच रखते हैं
वही भारतीयता है जो हमारी धरोहर की खान में
श्रीराम और श्रीकृष्ण बतौर आर्य हमारे लिए छोड़ गए।
लोकसभा में झप्पी वाले कथित प्यार के देवदूत
उल्टे हाथ की सोच वाले हँसिया – हथौड़ी के कथित मालिक
आप लोग बुलाए जाने पर विज्ञान भवन जाइएगा
आर्य संस्कृति यानी हिन्दू संस्कृति के साक्षात्कार से धन्य हो जाइएगा।