-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
कहा जाता है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में लोहा पीट कर अपना जीवन यापन करने वाले बंजारे मूल रूप से राजस्थान में मेवाड़ क्षेत्र के हैं। यह भी दावा किया जाता है कि ये महाराणा प्रताप के वशंज हैं। महाराणा प्रताप स्वयं लगभग 26 साल तक बंजारे का जीवन जीते रहे। उन्होंने कठोर प्रतिज्ञा की थी कि वे सादा भोजन करेंगे और सादा जीवन जीएंगे। महाराणा प्रताप 26 साल तक इस कठोर प्रतिज्ञा पर अमल करते रहे। अकबर के खिलाफ युद्ध लड़ते रहे। सच यह है कि अकबर महाराणा प्रताप को कभी हरा नहीं पाया। सच यह है कि महारणा प्रताप केवल दो किलों को छोड़ कर सभी लगभग 26 किले अकबर से छीन चुके थे। अब आप ही बताइए कि कौन जीता और कौन हारा। अब आते हैं देहरादून में फुटपाथों पर बंजारों की तरह जीवन जीने को मजबूर राजपूतों पर। इसमें दो राय नहीं कि ये लोग राजपूत हैं। इनकी चालढाल और चेहरे मोहरे आज भी रौनक से भरे होते हैं। इनमें साहस की कोई कमी आज भी नहीं होती। लेकिन इनकी शक्ति का लाभ हमारी सरकारों ने नहीं उठाया। हमेशा इनकी उपेक्षा की। हम देहरादून ओएनजीसी हॉस्पिटल के पास इन लोगों से मिलने गए तो इनका आक्रोश झुलसाने वाला था। इनका कहना था कि आप लोग क्यों आए हैं। कई पत्रकार आते हैं और कोई कुछ नहीं करता। हम सब कुछ बताएं पर लाभ क्या होगा। ऐसे प्रश्नों से हमें दो चार होना पड़ा। दुर्भाग्य है कि इस देश में हिन्दू चप्पे-चप्पे पर पीड़ित है। वह हिन्दू जो हजारों सालों से भारत की माटी से जुड़ा है उसका मजाक उड़ाया जा रहा है। इन्हें बसाया जाना चाहिए। सरकार के लिए यह काम कोई मुश्किल नहीं है। ये लोग केवल लोहा नहीं पीटते बल्कि ये लोग हस्तशिल्प में भी सिद्धहस्त होते हैं। ये लोग चटाई वगैरा बनाते हैं जिसमें बाँस का प्रयोग होता है। इनकी दयनीय दशा में अब परिवर्तन आना चाहिए। इनके पास शौच की व्यवस्था नहीं। एक बच्चे तक को एक बार में शौच के लिए दस रूपये देने पड़ते हैं। बड़े को तीस रूपये देने पड़ते हैं। हिन्दू का कब तक हिन्दुओं के देश में शोषण होता रहेगा। क्या भगवान जी ने कहा कि इनको इन्हीं के हाल में रहने देना चाहिए। इनको सरकार जमीन उपलब्ध करवाये और इन्हें मूलभूत सुविधाएं दे। इनके वोट ना के बराबर हैं इसलिए इन्हें नर्क में छोड़ दिया जाए। जब इन्हें आप भारतीय मानते हैं तो इनके साथ भारतीय की तरह व्यवहार किया जाए। रोहिंग्या घुसपैठिए इस देश में ठाठ से रह रहे हैं लेकिन अपने ही देश में हिन्दू दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इनकी दुर्दशा पर तो सुप्रीम कोर्ट को भी कभी कोई सपना नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्याओं को लेकर दरियादिल बना रहता है लेकिन हिन्दुओं की दुर्दशा पर मौन रहता है।