महासंग्राम मदिरा के लिए कोहराम
खुल गए मदिरालयों के कपाट
सज गए मधुशालाओं के हाट
देखो तो मधु-प्रेमियों के ठाट-बाट
कोरोना की करेंगे ये मदिरा छक कर खड़ी खाट
वाह री सरकारो जी चाहता है चूम लूँ तुम्हारा ललाट
अपने ही हाथों ढीले कर छोड़े तमाम बन्धन छूट की अजब बन्दर-बाँट
क्या साबित करना चाहते हो कोरोना-वीरों के हाथ काट
क्या कोरोना आपके दिमाग गया पूरी तरह चाट
कोरोना जोह रहा था धीरज से आपकी ओर से नादानी की बाट
नतीजा सामने है-मधुशालाओं की चौखट पर मची मार-काट।
मधुशालाओं में छाई बहार
मधुशालाओं की दर हुई गुल-ओ-गुलज़ार
रेड-जोन, औरेंज जोन और ग्रीन जोन सब हो गए तार-तार
जो कोराना खा रहा था लॉकडाउन से खार
खुशी का उसकी नहीं पा सकते हम पार
सरकारों के सभासदों, अरे चाटुकारो ये कैसी तुम्हारी सलाह की धार
पहले रामायण की अमृत धार
फिर मदिरा की बे-हया बौछार
देखो मदिरा का प्यासा ‘भारत-जन’ खड़ा सड़कों पर बन-कतार
यही है भारत-वर्ष के संस्कारों और संयम का खुमार
यही है विश्व-गुरु बनने की बातें करने वाले भारत का नैतिक आधार
भिखारियों की तरह बिलबिला रहे हैं धूप में खड़े मझधार
यही है देश के लिए मर-मिटने का तुम्हारा जज्बा अपार
यही है तुम्हारी अर्थव्यवस्था का क्या एकमात्र आधार
दो हफ्ते और रखते बन्द अगर ‘मानवता-विरोधी’ इन मधुशालाओं को लगातार
आसमान टूट पड़ता या धरती फट पड़ती बताओं देश के कर्णधार
ये राम और कृष्ण का भारत है या रावण का भारत बताओ सरकार
मदिरा की नदियाँ बहाना नहीं है प्रगतिवाद ‘ऐ सूत्रधार’
नैतिकता से वंचित राष्ट्र में आखिर क्यों न हों नारियों पर अत्याचार
क्यों न हों आखिर मातृ शक्ति पर बे-रोकटोक बलात्कार
नारी बनाई जाती रहेगी ऐसे समाज में दामिनी बार-बार
मदिरा पर अपनी निर्भरता को लेकर हो जाओ अब होशियार
क्या कर रहे हैं देश के न्यायालय ऐसे में झुग्गीवाले बड़खुरदार
क्या भारत कथित प्रगति के नाम पर होता जाएगा इसी तरह बेसुरा और बे-सार।
धन्यवाद। सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।