धर्माटन में सुधार की आवश्यकता
-वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून
जैसे ही उत्तराखण्ड की चार धाम यात्रा ने गति पकड़ी वैसे ही हिमपात हो गया। कुछ घंटे पहले केदारनाथ धाम में हिमपात हुआ। इस हिमपात का केदारनाथ धाम में पहुँच चुके धर्माटकों ने तो स्वागत किया। इस हिमपात का आनन्द उठाया और उठा रहे हैं किन्तु वे धर्माटक जो बाबा केदारनाथ की राह पर थे उन्हें सुरक्षित स्थानों पर रोक लिया गया है। ताकि मार्ग में किसी तरह की बाधा से उन्हें नुकसान ना हो। यह काम प्रशंसा के लायक है। हेलीकॉटर सेवाएं भी स्थगित कर दी गयी हैं। कुल मिलाकर जो धर्माटक धाम में पहुँच चुके हैं। वे ही बाबा के दर्शन का लाभ उठा पा रहे हैं। लेकिन केदारनाथ धाम में तेजी से बदले इस मौसम से धर्माटकों को परेशानी भी हो रही है। भले ही केदारनाथ धाम के आसपास धर्माटकों के ठहरने की पर्याप्त सुविधा हो फिर भी मौसम में हुए अचानक बदलाव से दिक्कत तो होती ही है। उत्तराखण्ड सरकार को आगे की सोचनी चाहिए। हिमपात हो जाने की स्थिति में भी धर्माटन यात्रा बिना रूकावट के चल सके। राज्य सरकार को ऐसी व्यवस्थाएं करनी पड़ेंगी। बामुश्किल तीन महीने की धर्माटन यात्रा के लिए इस तरह की व्यवस्थाएं आवश्यक हैं। जो बड़े से बड़े हिमपात को रूकावट न बनने दें। किसी बड़े हिमस्खलन या भूस्खलन की बात अलग है। हालॉकि, ऐसी विपदा में भी सरकार के पास अपने स्तर पर पर्याप्त संसाधन होने चाहिएं ताकि अड़चनों को जल्दी से जल्दी दूर किया जा सके। तभी जाकर देश विदेश से आने वाले धर्माटकों को असुविधाओं से बचाया जा सकेगा और धर्माटन को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाई जा सके। इस तरह का कोई बड़ा विज़न राज्य सरकार में दिखाई नहीं देता। राज्य का पर्यटन विभाग पुराने ढर्रे पर चल रहा है। अब इस ढर्रे का विस्तार जरूरी है। धर्माटन और पर्यटन में नई से नई तकनीक का लाभ उठाकर इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लाना होगा। हिमपात होते ही जगह-जगह धर्माटकों और पर्यटकों का फंसना पुराने जमाने की बात हो जानी चाहिए पर ऐसा नहीं हो पा रहा है। राज्य के पर्यटन और धर्माटन मंत्री को कसरत करनी पड़ेगी। पर्यटन और धर्माटन को अपने हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता है। 21वीं सदी के भारत में गर्मजोशी होनी चाहिए सुस्ती नहीं। प्रधानमंत्री मोदी की सोच से प्रेरणा लेनी चाहिए। अगर कोई धर्माटक या पर्यटक हिमपात के दौरान भी यात्रा जारी रखना चाहे तो उसे यह विकल्प मिलना चाहिए। प्राप्त समाचारों के अनुसार धर्माटकों और पर्यटकों को सुरक्षित स्थलों पर रोक दिया गया है। सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा किया गया है। बताया जा रहा है कि ऐसे यात्रियों की संख्या लगभग 15 हजार है। बहरहाल, राज्य सरकार को बेरोकटोक धर्माटन और पर्यटन जारी रखने की व्यवस्था करनी ही पड़ेगी। हालातों के आगे घुटने टेक देने से काम नहीं चलेगा। बहुत चुनौतीपूर्ण बाधा के समय ही धर्माटन यात्रा या पर्यटन यात्रा का बाधित होना शुभ कहा जा सकता है। केवल कुछ घंटे के हिमपात से ऐसी यात्राओं का बाधित होना चिंताजनक है। इसके अलावा, अगर यह सच है कि वहाँ धाम के प्रांगण़ में चप्पे-चप्पे पर इतना पैसा यहाँ रखो, उतना पैसा वहाँ रखो, यह सब चल रहा है और चलता रहा है तो यह सनातन धर्म के लिए कलंक है। भारत में धर्माटकों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार असहनीय है। सनातन धर्म सदा से ही तमाम मजहबों के निशाने पर रहा है और आज भी है। ऐसी स्थिति में हम सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। धर्म स्थलों पर ऐसी लूट असहनीय है। सरकार को कड़े कदम उठाकर इस लूट को रोकना चाहिए। धर्माटक की श्रद्धा और क्षमता पर निर्भर करता है कि वह कहाँ पर कितना चढ़ावा चढ़ाए। चढ़ावा के लिए किसी श्रद्धालु को विवश करना पाप है। अगर उत्तराखण्ड के चार धामों मेे कहीं भी ऐसा चल रहा है तो यह सनातन धर्म के लिए अच्छा नहीं। हम सनातन धर्म को मानने वाले हैं। हमें त्याग के रास्ते पर चलना है। लूट के रास्ते पर नहीं।
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