जात-पात और ऊँच-नीच के
अब तो भेद मिटाओ
सदियों भुगता
सदियों भोगा
सदियों के जख्म हरे हैं गहरे
सदियों से क्यों बने हुए हो
सदियों से क्यों बँटे हुए हो
हो गए हो क्या बहरे।
इस्लाम आया
क्रिस्तान आया
जात-पात में बँटकर हमको
इतना समझ न आया
आपसी खींचतान और नफरत में हमने
सोने की चिड़िया को हाय गँवाया।
बारी-बारी बने गुलाम
बुद्धि-सामर्ध्य चिंतन-मनन शूर-शौर्य सब गँवाया
ढोर-डंगर भेड़-बकरियों जैसा हमने अपमान पाया
फिर भी हमको राम-कृष्ण का संदेश याद न आया
हमें चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य का सपना तक न आया
तभी तो हमें चौपाय बनाकर
लुटेरे-इस्लाम और सौदागर डरपोक क्रिस्तान ने
हम पर लगाए रखे सदियों पहरे
चलो तब की तो छोड़ो
हम अब भी क्यों बने हुए हैं बहरे।
Virendra Dev Gaur
Chief Editor (NWN)