शिमला (आरएनएस)। प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला जल संकट के मामले में माना कि अब शहर में पानी की वितरण प्रणाली काफी हद तक पटरी पर आ गई है। पानी की सप्लाई क्षेत्रवार बराबर दी जा रही है। पानी की आपूर्ति में भी काफी सुधार आया है। लोगों को भी पानी का इस्तेमाल करने के प्रति जागरूक किया जा रहा है। मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि शिमला शहर को आने वाला 50 लाख लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। हो सकता है कि यह पानी लीकेज व चोरी में बर्बाद हो रहा हो। कोर्ट ने खेद जताया कि मुख्य सचिव के शपथपत्र में पानी की इतनी बड़ी बर्बादी को रोकने के लिए उठाए जा रहे या उठाए गए कदमों को नहीं बताया गया है। यह भी नहीं बताया गया है कि पानी की लिफ्टिंग के लिए क्या आधुनिक प्रणाली इस्तेमाल में लाई जा रही है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल व न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने पाया कि मुख्य सचिव व नगर आयुक्त के शपथपत्र में यह भी नहीं बताया गया कि जिन दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही व कृत्य के कारण शिमला में जल संकट पैदा हुआ, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। कोर्ट को आश्वस्त किया गया कि दोषियों के खिलाफ एक सप्ताह के भीतर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिए कि वह इस संबंध में एक सप्ताह के भीतर शपथपत्र दायर करे। नगर निगम आयुक्त को अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में उपस्थित रहने के आदेश भी दिए गए। नगर निगम ने की-मैन की वीडियो रिकॉर्डिग को असंभव बताते हुए उनकी वीडियो रिकॉर्डिग करने के संबंध में दिए आदेशों में संशोधन की अर्जी दी थी। इस अर्जी को सुनवाई के बाद निगम ने वापस ले लिया। शिमला ब्रिटिश रिजॉर्ट चौड़ा मैदान की ओर से आवेदन कर उनके पानी के कनेक्शन पुन: जोडऩे के आदेश की गुहार लगाई गई थी। कोर्ट ने रिजॉर्ट पर 50 हजार रुपये की कॉस्ट की शर्त पर इसे वापस लेने की इजाजत दी। मामले पर सुनवाई 18 जून को होगी।
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