लालकुँआ वालों की मर्जी क्या करें सर जी
अनिल बलूनी की भविष्यवाणी सच हुई
-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
हरीश रावत फिर चुनाव हार गए। यह खबर जब तक वे राजनीति में रहेंगे ताजा रहेगी। कहते हैं ऐन वक्त पर हरीश दा ने लालकुँआ का विकल्प चुना था। वहाँ से तो एक महिला का टिकट तय था। एक तरह से एक महिला का टिकट छीना गया। उनके आँसू छलके जरूर होंगे। हरीश रावत के भी आँसू निकले होंगे। आखिर मेरी खता क्या थी- यह प्रश्न तो उनके मन में बादल बनकर उमड़-घुमड़ रहा होगा। बहरहाल, वे हार गए। भाजपा नेता और सांसद अनिल बलूनी ने चुनाव से कई दिन पहले बड़े सहज अंदाज में कहा तो था कि वे तो अपनी ही सीट नहीं बचा पा रहे हैं तो कांग्रेस को क्या जिताएंगे। तब शायद बहुत कम ने यकीन किया होगा अनिल बलूनी पर। अनिल बलूनी का दावा सच सिद्ध हुआ। हरीश रावत हार गए। वे पिछले चुनाव में दो सीटों से लड़े थे और दोनों से हार गए। चुनाव से करीब एक महीने पहले हरदा गुन-गुना रहे थे, कदम-कदम बढ़ाए जा कांग्रेस के गीत गाए जा। बड़े उत्साह में दिख रहे थे तब हरदा। भाजपाइयों ने अब हरीश रावत का नाम हरदा रख दिया है। इसका मतलब होता है जिसे हारने की आदत हो। वाकई क्या हरीश रावत हारने की आदत के आदी हो चुके हैं या उन्हें उस महिला के आँसू लग गए। हरीश रावत की मायूसी के इस दौर में उनके साथ होली मनाने जाना चाहिए ताकि उन्हें लगे उत्तराखण्ड की जनता उनके साथ है और वह नहीं चाहती कि हरदा विधायकी का चुनाव लड़ें । हरदा को बड़ी मंजिल तय करनी चाहिए। आखिर कांग्रेस की इज्जत का सवाल है। -सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार, देहरादून।