-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
उत्तराखण्ड मूलरूप से वन प्रदेश है। जहाँ गंगा, यमुना और सरयू जैसी पावन नदियों का मायका है। उत्तराखण्ड में जहाँ एक ओर फूलों की घाटियाँ हैं वहीं दूसरी ओर रेशमी घास के बुग्याल हैं। उत्तराखण्ड की वन संपदा पर उत्तराखण्ड का भविष्य टिका है। उत्तराखण्ड के भविष्य पर लगभग 70 प्रतिशत उत्तर भारत का भविष्य टिका है। इसीलिए, हरियाली का महत्व भी बढ़ जाता है। हरियाली होगी तो वर्षा होगी। वर्षा होगी तो हिमपात भी होगा। हिमपात होगा तो हिमनद (ग्लेशियर) होंगे। उत्तराखण्ड की जैवविविधता हरियाली पर ही निर्भर है। तभी तो हरेला का महत्व बहुत अधिक है। यह एक महोत्सव है जिसे महान उत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए। जंगलों का उपयोग होता है लेकिन जंगलों का नाश नहीं होना चाहिए। जंगलों का भी विकास होना चाहिए। जंगलों के विकास पर ही मानव का विकास टिका हुआ है। जंगलों में आ रही कमी भी जलवायु परिवर्तन का एक कारण है। पौधा रोपण अभियान इस महोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम होना चाहिए। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है इन पौधों को बड़़ा करना और अंत तक इनकी रक्षा करना। अमूमन यह देखा गया है कि ताबड़तोड़ पौधारोपण तो कर दिया जाता है मगर फिर इन्हें नष्ट होने के लिए छोड़ दिया जाता। यह सच हम और आप सभी बखूबी जानते हैं। यह ड्रामा नहीं होना चाहिए। ऐसे ही ड्रामों ने हमारे भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। यह एक खतरनाक किस्म का भ्रष्टाचार है। जिस पर तलवार चलनी चाहिए। पौधारोपण तभी हो जब नीयत साफ हो। उत्तराखण्ड के लिए हरेला महोत्सव एक साधना की तरह होना चाहिए। हमारा जीवन पेड़ों की कृपा पर ही निर्भर है। उन्नति पेड़ों केे बिना संभव नहीं। हरेला को लेकर विद्यालयों में तरह-तरह की गतिविधियाँ संचालित होनी चाहिएं। इनके माध्यम से विद्यार्थियों को वृक्ष मि़त्र बनाना चाहिए। आज के विद्यार्थी वनों के भविष्य को बचाएंगे और अपनी समृद्धि को सुनिश्चित करेंगे।