हिमालय फिर गूँज रहा है
हिमालय की हिम
पिघल रही है
गंगा यमुना उबल रही है
वादों-कसमों के अफसानों पर
युवा पीढ़ी सुलग रही है।
हिमालय फिर गूँज रहा है
घाटी पर्वत करवट बदल रहे हैं
गढ़वाल कुमाऊँ के संगम गैरसैंण में
राजधानी का उत्सव उमड़ रहा है
युवा जोश की अँगड़ाइयों में
बुझ चुका होश दम तोड़ रहा है
बच्चा बच्चा सोच रहा है
आन्दोलन का बिगुल सब कुछ बोल रहा है
वादों कस्मों के अफसानों पर दिल्ली का सिंहासन भी डोल रहा है।
Virendra Dev Gaur
Chief Editor (NWN)