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टाईम, टेक्नाॅलाजी, टैलेंट और टेनेसिटी के साथ जल संरक्षण हेतु प्रयास आवश्यक – चिदानन्द सरस्वती

-विश्व जल सप्ताह, 23-28 अगस्त 2020

 

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देहरादून (ऋषिकेश) (दीपक राणा) । प्रतिवर्ष 23 से 28 अगस्त को ’’विश्व जल सप्ताह’’ मनाया जाता है जिसमें पूरी दुनिया से 500 से अधिक संयोजक संगठनों, 4,000 प्रतिभागी और 130 से अधिक देशों के जल वैज्ञनिक स्टॉकहोम में इकट्ठा होकर जल के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

इस वर्ष 2020 में जहां विश्व के अधिकांश देश कोविड-19, वैश्विक महामारी से जुझ रहे हैं ऐसे में विश्व जल सप्ताह जो स्टॉकहोम में 23-28 अगस्त 2020 को होने वाला था उसे रद्द कर दिया गया। परन्तु जल की समस्यायें तो यथावत हैं, उस पर चिंतन और समाधान भी आवश्यक है।

विश्व जल सप्ताह स्टॉकहोम इंटरनेशनल वॉटर इंस्टीट्यूट द्वारा 1991 से प्रतिवर्ष आयोजित किया जा रहा है। वर्ष 2020 में विश्व जल सप्ताह की थीम ’जल और जलवायु परिवर्तन पर त्वरित कार्रवाई’ रखी गयी है।

परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि कोविड-19 के कारण विश्व जल सप्ताह नहीं मनाया गया लेकिन जल की समस्यायें तो यथावत हैं इसलिये जो जहां पर है वहां से ही अपने स्तर पर जल संरक्षण हेतु प्रभावशाली, नवीन और गतिशील गतिविधि को विकसित करने का प्रयास करें ताकि वैश्विक स्तर पर जल के संरक्षण हेतु आने वाली चुनौतियों का सामना किया जा सके। उन्होंने सभी जल वैज्ञानिकों, व्यावसायिक संगठनों, नीति निर्धारकों, और नागरिकों का आह्वान करते हुये कहा कि घटता जल स्तर एक वैश्विक समस्या है अतः सभी मिलकर अपने टाईम, टेक्नाॅलाजी, टैलेंट और टेनासिटी के साथ जल संरक्षण हेतु प्रयास करें तो इस क्षेत्र में विलक्षण परिवर्तन हो सकता है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि अभी कोविड-19 के दौरान डब्ल्यूएचओ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, साबुन से नियमित रूप से हाथ धोने को कोरोना वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी उपाय माना गया है। साथ ही सभी लोगों के लिये स्वच्छ और पीने योग्य जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना भी अति आवश्यक है। वर्तमान समय में जल की मांग पहले से अधिक बढ़ गयी है और इस समय देश भर में सभी के लिये स्वच्छ जल 24 घंटे उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है।
वर्ष 2017 में ‘केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय’ द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, देश में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल की उपलब्धता वर्ष 2001 (1820 घनमीटर) से घटकर वर्ष 2011 में 1545 घनमीटर तक पहुँच गई थी। आँकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल की उपलब्धता वर्ष 2025 तक घटकर 1341 घनमीटर और वर्ष 2050 तक 1140 घनमीटर तक पहुँच सकती है।
वाटर ऐड की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 16.3 करोड़ लोगों ऐसे हैं जिनके घरों के नजदीक स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हो पाता। वर्तमान में कोविड-19 के दौरान सबसे अधिक खतरा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों को है, जो कि प्रायः घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ सबके लिये स्वच्छ जल की उपलब्धता बहुत कठिन है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि जल का अनियंत्रित दोहन और प्रदूषण वर्तमान जल संकट का सबसे प्रमुख कारण है अतः स्वच्छ जल की आपूर्ति को सुनिश्चित करने हेतु इस पर नियंत्रण करना बहुत ही आवश्यक है। प्राकृतिक जल संरक्षण और जल के पुनर्प्रयोग को बढ़ावा देकर जल संकट के दबाव को कुछ कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हम जल को बना तो नहीं सकते परन्तु उसका सुरक्षित उपयोग तो कर ही सकते हैं इसलिये जल संरक्षण हेतु प्रत्येक व्यक्ति को अपना योगदान देना पहला कर्तव्य होना चाहिये।

-जल का अनियंत्रित दोहन और प्रदूषण वर्तमान जल संकट का सबसे प्रमुख कारण


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