ऋषिकेश (दीपक राणा) । वर्तमान में ट्रस्टियों को नहीं है धर्मशाला की चिंता। किराया लेने तो आते हैं। पर धर्मशाला की मरम्मत पर किसी भी तरह का कोई खर्च दिखाई नहीं दिया। वही कमरों की हालत तो खंडहर जैसी और शौचालय तो दुर की बात है जिसकी कोई सुविधा नहीं है। तीर्थनगरी ऋषिकेश में धर्मशालाएं अब यात्रियों को ठहराने के बजाए खरीद फरोख्त का माध्यम बनती जा रही है। इस दिल्ली वाली धर्मशाला पर 2002 से खरीददारों की टेढ़ी नजर पड़ी हुई है। सूत्रों से मिली जानकारी में सामने आया है कि इस धर्मशाला को जारी किए पट्टे की अवधि भी समाप्त हो गई है। इसके निर्मित काल की तरफ जाकर पता चला कि इस धर्मशाला को अंग्रेजी शासन 1899 में गंगाराम मोतीराम ने बनाया था ।और वर्तमान ट्रस्टियों के पिता को बाद में वारिस बनाया था। उपलब्ध पत्रों में स्पष्ट है कि इस धर्मशाला को बेचा नहीं जा सकता है। वही ट्रस्टी मोहन लाल राठी और राजकुमार राठी बताए जा रहे हैं। जिनपर आरोप लग रहा है कि बाहर दुकानों का किराया तो लेते हैं पर धर्मशाला की देखरेख पर किसी भी प्रकार का खर्च नहीं किया जाता।। सूत्रों से मिली खबर है।कि वर्ष 2005 में एक स्थानीय व्यवसायी ने किया था इस धर्मशाला का सौदा। ओर कई दूसरे प्रोपर्टी डीलर भी देख चुके हैं इस धर्मशाला को। धर्मशाला के व्यवस्थापक वेद प्रकाश बर्थवाल, का कहना है कि यहां सही ढंग कमरे और शौचालय ना होने के कारण तीर्थ यात्रियों को यहां ठहराया नहीं जा सकता। देखरेख न होने के कारण धर्मशाला खंडहर में तब्दील हो चुकी है।
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