महाराजा रणजीत सिंह का सरदार नलवा और कश्मीर
साल 1791 में गुजराँवाला पंजाब में जन्मा नलवा
माता धरम कौर और पिता गुरदियाल सिंह उप्पल के घर हुआ ये जलवा
सात बरस के नलवे के सर से उठ गया था पिता का साया
माता धरम कौर ने पाला दस बरस में नलवे को अमृत छकाया
खत्री परिवार का नलवा बना सिख खालासा पन्थ उसने अपनाया
पिता का काम सँभाला उसने बारह बरस में जिम्मा उठाया
घुड़सवारी की धुन ने उसको उम्दा एक घुड़सवार बनाया
सम्पत्ति के झगड़े को लेकर माँ ने नलवे को महाराजा के दरबार भेजा
नलवे की विशेषताओं को देख महाराजा रणजीत सिंह नलवे पे रीझा
महाराजा का फैसला नलवे के पक्ष में था आया
चौहद बरस के नलवे को महाराजा ने अपना व्यक्तिगत सहायक बनाया
इसी बरस नलवे ने शिकार पे जाकर बिना हथियार एक बाघ को मार गिराया
बाघ को अकेले उसके मुख से फाड़ा चौदह बरस का नलवा बाघमार कहाया
महाराजा रणजीत सिंह ने था ऐसा दिलेर और दमदार योद्धा पाया।
‘सिख खालसा फौज’ के इस बाघमार ने महाराजा का यश दुनिया में फैलाया
हर बार महाराजा की उम्मीदों पर खरा उतरने का था उसने वर पाया
छोटी उम्र में वीरता का उसने झंड़ा इस जग में लहराया
उसे देख-देख कर भरतीयों को वीर अभिमन्यु का था स्मरण हो आया
बीस बड़ी-बड़ी लड़ाईयों में नलवे ने सिख साम्राज्य का परचम लहराया
हर युद्ध में नलवे ने अपनी शूरवीरता से दुश्मन को दहलाया
सिख साम्राज्य की बढ़ती ताकत से तो ब्रितानिया भी था घबराया
गुरु गोविन्द सिंह जी के सपनों ने बड़ी हद तक था खुद को साकार होते पाया
बाघमार हरी सिंह नलवे ने आखिर में फौज का सबसे बड़ा ओहदा था पाया।
खैबर दर्रे से लेकर तिब्बत तक की दुनिया में
हर कोई दुश्मन था बुरी तरह थर्राया
भारत को धीरे-धीरे गुलाम बनाते जा रहे अंग्रेजों में
महाराजा रणजीत सिंह के नाम की दहशत का फैला था साया
महाराजा के जीते-जी अंग्रेजों ने सिखों के खिलाफ न कोई दुस्साहस दिखलाया
ऐसी थी महाराजा की पंजाब से काबुल तक फैली छत्र-छाया
हरी सिंह नलवे जैसे शूरवीर लड़ाके की थी, ऐसी गजब माया।
नलवे जैसे सिपहसालारों की बदौलत पराक्रमी महाराजा ने
काबुल के मुसलिम सुल्तानों को बार-बार था बुरी तरह छकाया
किसी आक्रान्ता मुसलिम ने तब महाराजा के सम्मुख सर न उठाया
शौर्य-शूरवीरता के इसी दौर में सन् 1819 में वह पल भी था आया
जब महाराजा ने आक्रान्ता मुसलिमों से पूरे कश्मीर को आजाद कराया
हरी सिंह नलवे ने इस पराक्रम में बढ़-चढ़कर था शौर्य दिखाया
एक-एक आक्रान्ता को ढूँढ-ढूँढ कर था उसने जहन्नुम पहुँचाया
पूरे कश्मीर को मुसलिम आक्रान्ताओं से था भय-मुक्त कराया
सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर जी ने कभी कश्मीर में इसलाम के आतंक पर था ऐतराज जताया
उनके इसी परमार्थ के कारण औरंगजेब ने था उनका सर कलम करवाया
इसलिए हरी सिंह नलवे तू तो फरिश्ता था रे बन कर आया
तभी तो महाराजा ने तुमको कश्मीर का भी दीवान था बनाया
हे महाराजा रणजीत सिंह हमने तो तुमको शत-शत बार है शीश नवाया
आज फिर वैसा ही पूरे कश्मीर में देश-विरोधी माहौल बन आया
महाराजा रणजीत सिंह जी हमने आधा कश्मीर तो पूरी तरह गँवाया
बाकी आधे कश्मीर पर भी महाराजा जिहाद का मँडरा रहा है काला साया
ऐ भारत! बहुत हुआ दानवों के मानवाधिकार नहीं होते
‘जिहादी-दानवों’ के खात्मे के बिना भारतीय रह जाएंगे सदा रोते।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।