देहरादून (ब्यूरो)। उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार ने मरीजों की सेवा के लिए 108 का शुभारंभ किया था और यह व्यवस्था पहाडों में बहुत कारगर साबित हुई थी क्योंकि पहाडों में गर्भवती महिलाओं को घर से अस्पताल पहुंचाने में बहुत बडा खतरा रहता था और सही समय पर वाहन न मिलने के कारण दर्जनों महिलाओं को मौत की नींद भी सोना पडा था। भाजपा की पूर्व सरकार ने हर जनपद में इस व्यवस्था को लागू करने में कोई कसर नहीं छोडी थी जिसके चलते राज्य के सभी जिलों में 108 सीना फुलाकर सडकों पर दौड रही थी लेकिन पिछले काफी समय से राज्य में 108 के पहिये धीरे-धीरे जाम होते चले गये और हालात यह है कि मौजूदा समय में 108 जिंदा रहने के लिए खुद ही समूचे उत्तराखण्ड में तडफती हुई नजर आ रही है और इससे बडा मजाक क्या हो सकता है कि 108 को बुलावा दिया गया और वह नहीं आई तो पहाड के चमोली में एक महिला को सडक से गुजर रहे कुडे के ट्रक में लादकर उसे अस्पताल पहुंचाकर उसकी जान बचा दी गई। यह कृत्य सरकार की छवि पर एक बडा सवाल खडा कर गया कि जो डबल इंजन की सरकार अपनी 108 को नहीं बचा पा रही है
वह राजधानी से चार सौ किलोमीटर दूर हिमालय को क्या बचा पायेगी? 108 खुद मृतशय्या पर है, इनमे काम करने वाले कर्मचारियों को पांच महीनों से तनख्वाह नही मिल रही,108 वाहन मेन्टेन्स के आभाव में खड़े हों गये है कुछ कंडम भी हों गये है, इनके पास डीजल डलवाने को पैसा नही,बैटरी डालने को पैसा नही इनमे जो ऑक्सीजन सिलेंडर होते है वो खाली है जो दवाएं साथ लेकर चलते है वो खत्म हों गयीं है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार अपनी ही 108 सेवा को बचाने में किस तरह से फिसड्डी हो गई है? चमोली में 108 के न पहुंचने पर एक गर्भवती महिला को कूडेदान की गाडी में अस्पताल तक पहुंचाना यह साबित कर रहा है कि डबल इंजन की सरकार हवा में है? उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री के पास स्वास्थ्य मंत्रालय है और यह मंत्रालय क्या कर रहा है जबकि स्वास्थ्य की कमान अपर मुख्य सचिव के पास है लेकिन वे क्या कर रहे है? बहस छिडी हुई है कि ये सेवा ही ऐसी थी जिससे बीजेपी सरकार को जाना जाता था एक बार इनके कट्रोल रूम में सरकार को जरूर झांकना चाहिए था कि 108 कैसे काम कर रहा है? क्या दिक्कते पेश आ रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत मुख्य सेवक है और उन्हें खुद ही देखना चाहिए था कि 108 सेवा कैसी चल रही है 108 सेवा, एक वक्त था औसतन एक काल के 18 मिनट में 108 सेवा जरूरतमंद के दरवाजे पर होती थी अब ये समय गड़बड़ा गया है ऐसा क्यों हो रहा है? सरकार को पता होगा लेकिन इसका एहसास नौकर शाही को नही होगा वो इसलिए क्योंकि उन्होंने पहाड़ के दर्द को झेला नही डोली में प्रसव के लिए लाए जानी वाली महिला के दर्द को महसूस किया नही होगा।