सोलह श्रंगार में मेंहदी व आलते का काफी महत्व है, खासतौर पर शादीशुदा महिलाओं के इसे लगाने के पीछे तो और भी रोमांचक तथ्य मौजूद हैं। आलता ठंडक तो पहुंचती ही हैं, आलता लाल रंग का एक तरल पर्दाथ होता है जिसे महिलाएं अपने हाथ और पैरों यानी के एडियों पर लगाती हैं। आलता से महिलाओं के पैर अभी अधिक सुंदर लगते है इसे सुहाग की निशानी भी माना जाता है। इस रस्म के पीछे हमारे पूर्वजों की मान्यता है कि यत्र नारी पुज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता मतलब जहां नारी को सम्मान दिया जाता है उसकी पूजा की जाती है वहां देवताओं की निवास होता है। इसी तरह से इस रस्म के पीछे भी ऐसी मान्यता छिपी है कि नई दुल्हन को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि थाली में कुमकुम रखकर दुल्हन के गृहप्रवेश के समय उसके पैर बनवाने से घर में लक्ष्मी के स्थाई निवास के साथ ही हमेशा सुख व समृद्धि बनी रहती है। इसीलिए जब नई दुल्हन घर में आती है तो उसके पैरों के निशान घर के द्वार पर आ जाते हैं। आलता की रस्म जो की दुल्हन के गृह प्रवेश के दौरान की जाती है। इस रस्म में दुल्हन को अपने पैरों में कुमकुम लगाकर घर में प्रवेश करना होता है और उस कुमकुम की छाप घर के आंगन में छप जाती है। गृहप्रवेश की रस्म में ये सबसे महत्वपूर्ण रस्म मानी जाती है। अलता शुद्ध माना जाता है कुछ राज्यों में जैसे बंगाल, ओडिसा, बिहार में दुल्हन के पैर में आलता लगाने के साथ-साथ दूल्हे के पैर में भी आलता लगाने की प्रथा होती है वैज्ञानिकों का मानना है कि पैरों में आलता लगाने से ठंडक मिलती है और साथ ही तनाव कम हो जाता है।