6 दिसम्बर 1992 का दिन नई चेतना लेकर आया। भारत के जनमानस ने 1528 में बाबर के घोर अन्याय का प्रतिकार किया। भले ही लोग मुट्ठी भर रहे हों किंतु वे कुछ लोग भारत की चेतना के प्रतिनिधि थे। श्री राम मन्दिर की बुनियाद पर श्री राम मन्दिर के तोड़े गये हिस्सों से खड़ी की गई नापाक मस्जिद किसी मुसलमान का विरोध न होकर बाबर के कुकर्म का विरोध था। ज्वालामुखी के अन्दर जब लावा जमा होकर उफनता है तो भयानक विस्फोट के साथ ज्वालामुखी फट जाता हैं। 1528 से घोर अपमान और जलालत का लावा जमा होते-होते विस्फोट में तब्दील हो गया और नापका ढाँचा ध्वस्त हुआ। यह स्वाभाविक था। ऐसा होना ही था एक दिन। गंगा-जमुनी संस्कृति और सेक्युलरवाद का राग अलापने वाले मक्कारों को राम-कृष्ण और बुद्ध-महावीर को समझना पड़ेगा। राम भारत की चेतना है। कृष्ण भारत का राग हैं। बुद्ध और महावीर इन्ही महापुरुषों के चरित्र के के अंश हैं। बुद्ध और महावीर को इनसे अलग कर देखने वाले अज्ञानी और मूढ़ हैं। बाबर ने मीर बाकी नामक सेनापति को भेजकर श्री राम मन्दिर का विध्वंस करवाकर श्री राम की अस्मिता को छिन्न-भिन्न कर भारत को यह संदेष देने की कोशिश की थी कि राम का भारत इस्लाम के आगे नत-मस्तक हुआ। वह ऐसा कर पूरे भारत के मनोबल को धूल में मिला देना चाहता था। शायद वह ऐसा करके अपने नापाक मकसद में कामयाब रहा होगा। इस्लाम का जन्म सातवीं सदी के उदय के साथ हुआ था। खून-खराबे की गर्भ से निकला या मजहब शुरू से ही आक्रामक और लड़ाकू रहा हैं। हिन्दुओं का पतन इस मजहब का उसूल रहा हैं इतिहासकारों ने यह सत्य और तथ्य हमेशा छिपाया हैं। किन्तु पिछले पन्द्रह सौ सालों का इतिहास यदि आप बार-बार पढ़ें तो आप समझ पाएंगे कि मूर्ति पूजकों के सर्वनाश की दुर्भावना से ही यह मजहब जन्मा और पनपा। बहरहाल, यदि हिन्दुओं के देश में आज भी मौजूदा मुस्लिम विगत वर्षों में हुए गुनाहों के बावजूद बाबर और औरंगजेब का साथ देंगे तो भाईचारा कैसे बना रह पाएगा। मुसलमानों को तो खुद आगे आकर श्री राम मन्दिर कि निर्माण के लिये पहल करनी चाहिए। हिन्दू धर्म कम से कम दस हजार साल पुराना है और भारत की भूमि मूल रूप से हिन्दुओं की हैं। विकास बहुत आवश्यक है पर श्री राम मन्दिर का निर्माण परम आवश्यक है। कृपया अयोध्या का हक न मारें। भारत को और जलील न करें।
– वीरेन्द्र देव गौड़