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घृणा और भेदभाव के वायरस का समूल नाश ही स्थायी शान्ति का मार्ग – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

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? अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति दिवस

? ‘स्वयं को अहम से मुक्त रखे’

 

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देहरादून/ऋषिकेश (दीपक राणा)। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने विश्व शान्ति दिवस के अवसर पर दियेे अपने संदेश में कहा कि प्रतिवर्ष 21 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र संघ अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति दिवस मनाता है परन्तु कोविड-19 के दौरान कार्यक्रम का आयोजन सम्भव नहीं है किन्तु इस दौर में वैश्विक शान्ति की जरूरत और बढ़ गयी है।
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर शान्तिपूर्ण विश्व के निर्माण हेतु शान्ति की नयी अवधारणा और भयमुक्त वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है। साथ ही पूरे विश्व के लिये शान्ति के नये स्वरूप को गढ़ने की जरूरत है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि भारतीय दर्शन की कई उत्कृष्ट अवधारणायें है जिसमें आध्यात्मिकता के साथ अहिंसा, सत्याग्रह, सत्य और पवित्रता आदि भी समाहित है। वास्तव में ये जीवन के वे अनमोल मोती है जिससे चारों ओर शान्ति स्थापित की जा सकती है।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि विगत कुछ माह से कोरोना वायरस ने लगभग पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है और सभी देश उससे छुटकारा पाने के लिये प्रयासरत है। वैसे ही सदियों से भेदभाव, ऊँच-नीच, आतंकवाद, बड़ा-छोटा, घृणा और हिंसा रूपी वायरस समाज में व्याप्त है। जिस प्रकार कोविड जनसमुदाय को प्रभावित कर रहा है उसी प्रकार वैश्विक स्तर पर घृणा और भेदभाव का वायरस जनमानस को प्रभावित कर रहा है जिसके कारण कई बार शान्ति के प्रयास असफल हो जाते हैं । इन वायरसों का समूल नष्ट करना होगा तभी शान्ति दिवस की सार्थकता है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि जिस प्रकार कोरोना वायरस से मुक्ति के लिये लगभग पूरा विश्व एक-दूसरे का सहयोगी बनकर खड़ा है; एकजुट है और बदलाव चाहता है उसी प्रकार शान्ति के लिये भी एकजुट होना होगा।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि भारत तो हमेशा से ही शान्ति का उद्घोषक रहा है। हमारे ऋषियों ने ’सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के दिव्य मंत्रों से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शान्ति की
स्थापना की प्रार्थना की। जब हम शान्ति की बात करते हैं तो शान्ति से तात्पर्य केवल युद्ध विराम से ही नहीं बल्कि हमारे आन्तरिक द्वंद का शमन से भी है। आन्तरिक शान्ति ही वास्तविक शान्ति का स्रोत है। जब तक अन्तःकरण में शान्ति नहीं होगी तब तक न तो बाहर शान्ति स्थापित की जा सकती है और न ही अपने जीवन में भी प्राप्त की जा सकती है। सभी कहते है मुझे शान्ति चाहिये। देखें मैं शान्ति चाहता हूँ वाक्य में तीन शब्द हैं-मैं, शान्ति, चाहता हूँ। यदि हम दो शब्द ’मैं’ व ’चाहता हूँ’ को हटा दें तो केवल शान्ति शेष रह जाती है अर्थात आपको शान्ति खोजने की, शान्ति प्राप्त करने की या अन्यत्र कहीं शान्ति उत्पन्न करने की जरूरत नहीं है। जब हम अपने जीवन से ’’मैं एवं चाहता हूँ’’ शब्दों को हटा देते हैं तो मात्र शान्ति ही तो रह जाती है वह भी अपनी पूर्ण दिव्यता के साथ। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि शान्ति ही तो हमारा वास्तविक स्वरूप है। आजकल हमारे पास सब कुछ सेट है फिर भी हम स्वयं अपसेट हैं , हमारे पास चाय का सेट है; टीवी सेट है; सोफा सेट है सब कुछ सेट है किन्तु हम स्वयं अपसेट हैं क्यों? ’मैं’ की वजह से, अपने अहंकार की वजह से जो हमें सभी चीजों के मध्य में रखने का प्रयास करता है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि एक बहुत ही प्रभावकारी मंत्र है जो अहंकार को दूर करने व ईश्वर के प्रति समर्पित होने के लिये परिपूर्ण है जिसे हम रोज मननपूर्वक गा सकते हैं कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्या ऽत्मनावा प्रकृतेः स्वभावात्। करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि।। अपनी इच्छाओं को विलोपन है अर्थात अपने मैं को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना ही सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना हैं। वास्तव में हम ही स्वयं के सबसे बड़े शत्रु हैं। स्वयं ही अपने मित्र है; जैसा जीवन हम चाहते हैं, वैसा ही बन जाता है। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि हमारा अहंकार और अभिलाषायें ही शान्ति के मार्ग के सबसे बड़े अवरोधक हैं। जितना अधिक हम स्वयं को अहम् से अलग करते जायेंगे, उतना अधिक हम स्वयं को शान्ति के नजदीक पायेंगे। शाश्वत शान्ति के लिये मेरे पास सिर्फ एक मंत्र है ‘स्वयं को अहम और वहम से हम मुक्त कर सकें।

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि शान्ति के लिये बढ़ाया हर कदम विलक्षण परिवर्तन कर सकता है। बाह्य शान्ति के लिये स्वच्छ वातावरण भी जरूरी है, स्वच्छ जल और स्वच्छ वायु के बिना वैश्विक शान्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। नो वाॅटर, नो पीस, जब स्वच्छ वातावरण, स्वच्छ जल और स्वच्छ परिवेश होगा तो लोगों के दिलों में शान्ति की स्थापना भी होगी। अगर हम सम्पूर्ण मानवता की रक्षा करना चाहते है तो शान्ति ही एक मात्र मार्ग है।
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