जन्माष्टमी महोत्सव के साथ अपने जीवन को भी बनाये महोत्सव-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज
ऋषिकेश (दीपक राणा) । परमार्थ निकेतन में सोशल डिस्टेंसिंग का गंभीरता से पालन करते हुये कृष्ण जन्माष्टमी मनायी। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और परमार्थ परिवार के नन्हें बच्चों ने नृत्य, गीत-संगीत और भजन संध्या के माध्यम से सभी को मंत्रमुग्ध किया। छोटे-छोटे बच्चों की प्रस्तुतियां देखकर सभी भक्ति भाव में विभोर हुये।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ’’जन्माष्टमी उत्सव के साथ अपने जीवन को भी महोत्सव बनाये यही इस पर्व का आशय है। भगवान कृष्ण हम सभी को खुशी, शांति और सद्भाव का आशीर्वाद प्रदान करें और सारी चुनौतियों से उबरने और बदलावों को स्वीकार करने के शक्ति प्रदान करें। पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा, “भगवान कृष्ण के जीवन की सबसे सुंदर शिक्षा यह हैः कभी भी बाहरी परिस्थितियों के कारण अपने आप को मत खोना, कभी भी अपनी मुस्कुराहट को मत खोना, अपना गीत कभी मत खोना। भगवान कृष्ण का जीवन जन्म के समय परीक्षा और क्लेश से भरा हुआ था। जब उन्होंने एक बंद जेल की कोठरी में जन्म लिया। भगवान श्री कृष्ण ने जीवन भर अनेक संघर्ष किये उनके सामने असंख्य चुनौतियां आयी परन्तु उन्होंने हमेशा अपनी दिव्य मुस्कान को बनाए रखा। उन्होंने हमेशा अपनी दिव्य बांसुरी की तान को भीतर जिन्दा रखा। भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी का गीत हमेशा बजता रहा वे जहां भी गये उनका गीत उनके साथ ही था, उन्होंने कभी नहीं कहा, “मैं आज बुरे मूड में हूं इसलिए मैं अपनी भीतरी बांसुरी नहीं बजाऊंगा।“ यह हमारे अपने जीवन के लिए एक सुंदर संदेश है कि परिस्थितियां कैसी भी हों परन्तु हम अपने जीवन का संगीत हमेशा जिन्दा रखेंगे, अपने जीवन को महोत्सव बनाये रखने का प्रयास करेंगे। पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने जीवन लीलाओं के माध्यम से अनेक संदेश और शिक्षायें दी। उन्होंने श्री यमुना जी को कालिया नाग के जहर से मुक्त किया था आज हमारी नदियों को प्लास्टिक मुक्त करने की जरूरत हैं और उसके लिये एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग बंद करना होगा। श्री कृष्ण ने सुदामा को गले लगाकर बड़े-छोटे का भेद मिटाया, सखा प्रेम का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।
और हर युग के प्रांसगिक गीता का संदेश दिया जो भक्ति, कर्म और मुक्ति सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने नदियों को स्वच्छ रखने तथा गौ वंश को संरक्षित रखने का संकल्प कराया।