(1)
तभी तो जवान कहलाता हूँ
माँ तेरी गोद में सर रखकर
पल दो पल को सो जाता हूँ
तनिक सी आहट पर उठकर
झपटने के रुख में आ जाता हूँ
कभी पेट के बल चलकर
कभी पंजों पर उछल-उछल कर
कभी तो पीठ पर लेट लेटकर
मैं हमला करता हूँ
दुश्मन की घात के जवाब में
घात जोर का करता हूँ
गोलियों की बौछारों में
संगीत सुरीला सुनता हूँ
माँ तेरी जय हो के नारे
मन में बजते रहते हैं
माँ तेरी तस्वीरों के रंग
आँखों में सजते रहते हैं
तेरे हाथों के चुम्बन गालों पर लगते रहते हैं
भूख-प्यास
सर्दी-गर्मी और जल-थल
अंगारे और बर्फ के मरुस्थल सब
मखमली बिछौने बनते हैं
खून के फव्वारों में दिल ऐसा खिलता है
सात रंगों वाला इन्द्रधनुष जैसे आकाश में सजता है।
माँ तू ही तो है जननी मेरी
मेरी साँस-साँस है तेरी
जब बज जाती है रणभेरी
माँ करता मैं नहीं तनिक देरी
शरीर के कतरे-कतरे में
बिजली बन लहराती है दिलेरी
छाती पर पड़े गोली या गोला
जा डटता माँ तेरा ये छोरा
जब तक दुश्मन की दिखे न पीठ
मौत के आगे अड़ जाता हूँ बनकर ढीट
बिछ गया अगर माँ रण में तो क्या
फिर नई पौध बन उग आता हूँ
बार-बार आकर गोद में तेरी अपना सर रखता हूँ
कभी थक कर
कभी टूट कर
तभी तो जवान कहलाता हूँ
माँ मैं तो आता-जाता हूँ
तेरे ही खयालों में दिल अपना हर बार लुटाता हूँ।
(2)
तिब्बत की आजादी से बलात्कार
है कोई एटलस दुनिया में
जिसमें सच कहने की हिम्मत हो
जिसमें तिब्बत को कम्यूनिस्ट ड्रैगनिस्तान से आजाद दिखाने की ताकत हो
जिसमें हिंसक-विस्तारवादी ड्रैगनिस्तान से टकराने की चाहत हो।
ड्रैगनिस्तान की गुन्डागर्दी के आगे
एटलसों का पालतू कुत्तों की तरह लोट-पोट होना
तिब्बत को ड्रैगनिस्तान का हिस्सा स्वीकार कर लेना
संसार की शान्ति के खिलाफ कायराना इरादा है
मानवीय-मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाता है
दुनिया भर के विद्यार्थियों को झूठ की घुट्टी पिलाता है
आने वाली पीढ़ियों को अन्याय-अत्याचार का पाठ पढ़ाता है
ड्रैगनिस्तान को गुन्डागर्दी के लिए उकसाता है
क्या संयुक्त राष्ट्र संघ को अपनी नालायकी पर पछतावा है
अगर नहीं है तो फिर तेरा अस्तित्व एक कोरा छलावा है।
कोरोना-खलनायक ड्रैगनिस्तान का संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्दर
सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य होना जड़ है तमाम समस्याओं की
जैसे ही 1950 में इसने हथियाया था तिब्बत को
इसे सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता से बाहर कर देना चाहिए था
यह शुभ काम तब न किया गया
अरे! अब तो कर दो यह अच्छा काम
ताकि तिब्बत की ड्रैगन के पंजों से छूटे जान
संसार में एक नए युग का आरम्भ तो कर दो
बेचारे तिब्बत को उसका जायज हक़ दे दो
लोकतंत्र के शत्रु ड्रैगन से गुन्डागर्दी का लाइसेन्स वापस ले लो
दुनियाभर के बच्चों को मक्कार-एटलसों से निजात दे दो
तिब्बत को ड्रैगनिस्तान का अभिन्न अंग दिखाकर खुलेआम पाप करना बन्द कर दो।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।