सोमवार को पीएम मोदी उत्तर प्रदेश के मऊ में चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. पीएम रैली की स्पीच में लगातार गठबंधन शब्द का जिक्र आने के बाद यूपी के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो गई कि क्या यूपी चुनाव त्रिशंकु विधानसभा की ओर बढ़ रहा है और ऐसे में लोगों को मन में सवाल उठने लगे कि अगर विधानसभा त्रिशंकु होती है तो यूपी के सामने क्या होंगे विकल्प?
विकल्प-1: बीजेपी को बीएसपी का समर्थन
चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में बीजेपी और बीएसपी के बीच गठबंधन की सबसे अधिक संभावना है. अगर बीजेपी बड़ी पार्टी बनती है तो बीएसपी उसे समर्थन दे सकती है. पहले भी दोनों दल मिलकर सरकार बना चुके हैं. हालांकि, अभी चुनावी रैलियों में दोनों दलों के नेताओं के बीच बयानों में खूब तल्खी देखने को मिल रही है लेकिन राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है. सपा-कांग्रेस को रोकने के लिए दोनों दल फिर एक साथ आ सकते हैं. मायावती भी केंद्र की सरकार के साथ मिलकर और यूपी की सत्ता से जुड़कर अपनी राजनीतिक जमीन फिर से मजबूत करने की कोशिश कर सकती हैं. लोकसभा चुनावों में बीएसपी का खाता भी नहीं खुला था और सबकुछ अब विधानसभा चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा.
विकल्प-2: बीएसपी को बीजेपी का समर्थन
अगर बीएसपी सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आती है तो बीजेपी भी उसे समर्थन दे सकती है. इससे एक तरफ तो वह यूपी की सत्ता में शामिल हो सकती है या बाहर से समर्थन देकर अपने प्रभाव से यूपी में सियासी जमीन मजबूत कर सकती है और साथ ही कांग्रेस और सपा को सत्ता से दूर रखकर उन्हें फिर से उभरने का मौका नहीं देकर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेगी.
विकल्प-3: बीएसपी को सपा-कांग्रेस का बाहर से समर्थन
अगर बीजेपी को यूपी में बहुमत नहीं मिलता है तो उसे सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी दलों की एकजुटता सामने आ सकती है. बीजेपी को रोकने के लिए सपा-कांग्रेस बीएसपी को बाहर से या सरकार में शामिल होकर समर्थन दे सकते हैं. सियासत में सबकुछ संभव है. यूपी से सभी दल इस बात पर एकजुट हो सकते हैं कि बीजेपी को यूपी में सियासी जमीन तैयार करने का मौका नहीं मिल सके.
विकल्प-4: सपा-कांग्रेस को बीएसपी का समर्थन
अगर सपा-कांग्रेस गठबंधन के पास अधिक सीटें हों तो बीएसपी उसे बाहर से समर्थन कर सकती है. बीजेपी को सत्ता से रोकने के लिए ये सभी दल एक साथ आ सकते हैं. बीएसपी भले सरकार में शामिल न हो लेकिन बीजेपी को यूपी की सत्ता से दूर रखने में उसे कई फायदे दिखेंगे. एक तो ये कि सत्ता में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर वह 2019 की चुनाव की तैयारियों में लग सकती है और पिछली बार के सफाये से उबरने की कोशिश करेगी. ये तभी संभव होगा जब यूपी में बीजेपी का प्रभाव कम हो और बीएसपी ये जानती है कि ये तभी संभव है जब बीजेपी को लखनऊ से दूर रखा जाए.
विकल्प-5: सपा-कांग्रेस को छोटे दलों का साथ
यूपी विधानसभा चुनाव के लिए जिस तरह धुर विरोधी माने जाने वाली समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने हाथ मिला लिया उसी तरह चुनाव के बाद नए समीकरण सामने आ सकते हैं. सपा-कांग्रेस अगर बहुमत के करीब रहते हैं तो कई छोटे दलों के साथ मिलकर भी गठबंधन सरकार बन सकती है. कई ऐसे दल हैं जिनका अपने-अपने इलाकों में प्रभाव हैं और वे नई स्थिति में अपनी रणनीति फिर से तैयार कर सकते हैं. जैसे आरएलडी, अपना दल, भारतीय समाज पार्टी, पीस पार्टी, ओवैसी की पार्टी AIMIM आदि.
हालांकि, अभी चुनाव जारी है और दो चरणों के चुनाव होने हैं. और नतीजे आने के बाद ही स्थिति साफ होगी कि यूपी की सत्ता का ऊंट किस करवट बैठता है.