-एम0एस0चौहान
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के जवान मन ने सौगंध खाई है कि माँ गंगा के मायके में माँ गंगा को तरोताजा और यौवन से भरपूर बनाए रखेंगे। ऐसी सौगंध खाने के लिए मन की स्वच्छता और दृढ़ता आवश्यक है। तभी तो गंगा की स्वच्छता के मामले में उत्तराखण्ड एक उदाहरण बनकर सामने होगा। यह सौगंध पहले ही ले लेनी चाहिए थी। इस सौगंध के दूरगामी अर्थ हैं। माँ गंगा जब तक अपने मायके में स्वस्थ नहीं होगी तब तक अन्य प्रदेशों में माँ गंगा की स्वच्छता कायम नहीं रह सकती। अपने मायके में माँ गंगा की कल-कल और छल-छल में संगीत घुला होना चाहिए। किसी तरह की बाधा आड़े नहीं आनी चाहिए। इसके लिए पक्के इरादे के साथ-साथ बहुआयामी प्रयास शुरू करने पड़ेंगे। इन प्रयासों में सबसे ज्यादा जरूरी है माँ गंगा की पावन धारा का निर्मल बने रहना। उत्तराखण्ड के अंदर कहीं भी माँ गंगा और इसकी सहायक नदियों में गंदगी का प्रवेश वर्जित कर दिया जाए। घर का कूड़ा-करकट और किसी भी तरह गंदगी इन नदियों तक पहुँचने न पाए। पूरे क्षेत्र में कूड़ा-करकट और हर तरह की गंदगी का उचित बंदोबस्त किया जाए। ऐसा बंदोबस्त कि बरसात के समय में भी माँ गंगा और इसकी सहायक नदियों में किसी भी तरह का जहर न घुल सके। इसके लिए स्थानीय निकायों को अपना कर्तव्य समर्पण भाव से निभाना पड़ेगा। हालाँकि, इस समय ऐसा नहीं हो पा रहा है। स्थानीय निकायों और पंचायतों के सहयोग के बिना गंगा की निर्मल धारा को प्रदूषित होने से नहीं बचाया जा सकता है। स्थानीय निकायों और पंचायतों के प्रयासों की ईमानदारी से समीक्षा की जानी चाहिए। उत्तराखण्ड में माँ गंगा और इसकी सहायक नदियों की स्वच्छता बनाए रखने से उत्तराखण्ड से लेकर गंगा सागर तक के लोगों पर बहुत अच्छा असर पड़ेगा। उत्तराखण्ड को तो इस मामले में उदाहरण बनना ही पड़ेगा। अन्यथा, माँ गंगा के मार्ग में पड़ने वाले प्रदेश अपना दायित्व निभाने में आनाकानी करते ही रहेंगे। इन राज्यों की ढिलाई बरकरार रहेगी। इन्हें आड़े हाथों लेना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का ऐलान बहुत लाभदायक है। बशर्ते, इस ऐलान पर समर्पण भाव से काम किया जा सके। जनपद प्रशासन और स्थानीय निकायों के सामंजस्य से यह संभव है। किन्तु, यह सामंजस्य तभी स्थापित होगा जब मुख्यमंत्री कड़की दिखाएंगे। उम्मीद तो ऐसी ही है कि मुख्यमंत्री इस मोर्चे पर अंगद की तरह अपने पाँव अडिग रखेंगे जब तक भ्रष्टाचार और ढिलाई का रावण सर नहीं झुका देता। अपने दायित्व को निभाने में आनाकानी करना भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। ऐसा हो पाया तो उत्तराखण्ड में आने-वाले पर्यटक और धर्माटक रोमांचित महसूस करेंगे। देश और विदेश में उत्तराखण्ड का नाम गौरव के साथ लिया जाएगा। उत्तराखण्ड एक विश्वसनीय और सुंदर प्रदेशों में शामिल किया जाएगा। नतीजतन, उत्तराखण्ड की आमदनी बढ़ेगी। उत्तराखण्ड के लोगों की पर कैपिटा इनकम भी बढ़ेगी। लेकिन, आपदा न्यूनीकरण के मोर्चे पर भी चुस्ती को कई गुना बढ़ाना पड़ेगा। सब कुछ संभव है लेकिन कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह। मुख्यमंत्री की चाह में दम होना चाहिए। इरादा तो उनका बहुत अच्छा है। मुख्यमंत्री चाहते है कि माँ गंगा और इनकी सभी सहायक नदियाँ पूरे तरीके से स्वच्छ हों। इसके लिए लगभग 60 प्रतिशत गढ़वाल को सीधे-सीधे कवर करना पड़ेगा और बाकी 40 प्रतिशत गढ़वाल को परोक्ष रूप से साधना पड़ेगा। तभी जाकर माँ गंगा और इसकी सहायक नदियों में किसी भी तरह की गंदगी को जाने से रोका जा सकेगा। इसके लिए योजना का नाम कुछ भी हो यह ज्यादा जरूरी नहीं है। सबसे जरूरी यह है कि मुख्यमंत्री इस योजना की निगरानी स्वयं करें। यदि निगरानी का दायित्व अफसरों पर छोड़ा गया और स्थानीय निकायों पर आँख मूँद कर भरोसा कर लिया गया तो बात बनने वाली नहीं है। उत्तराखण्ड के लोगों के लिए यह समाचार भी अच्छा है मुख्यमंत्री गायब होते जा रहे प्राकृतिक जल धाराओं को लेकर चिंता प्रकट कर रहे हैं। इन छोटी बड़ी प्राकृतिक जल धाराओं को पुनर्जीवित करने के लिए जंगलों को फिर से खड़ा करना पडे़गा। गंगा की स्वच्छता पर गंभीर होने के साथ-साथ मुख्यमंत्री राज्य में पीने के पानी की उपलब्धता को लेकर भी गंभीर है। गर्मियों में पेयजल संकट आम बात है। गंगा की स्वच्छता और अविरलता उत्तराखण्ड ही नहीं पूरे देश के जीवन के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन उत्तराखण्ड में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता तो हर मौसम में बरकरार रहनी चाहिए। यह तभी संभव है जब गाँवों, कस्बों और शहरों में सुनियोजित विकास हो। ऐसा विकास जो पर्यावरण को हानि न पहुँचाए। वर्तमान के साथ-साथ भविष्य को उज्ज्वल रखने के लिए हो रहा विकास ही टिकाऊ विकास होगा। तभी जाकर भारत एक और श्रेष्ठ रह पाएगा। बहरहाल, मुख्यमंत्री धामी का प्रण स्वागत योग्य है।