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महाशिवरात्रि के पावन पर स्वामी चिदानंद ने रुद्राक्ष के पौधे का किया रोपण, दी शुभकामनाएं

ऋषिकेश (दीपक राणा)। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने महाशिवरात्रि की शुभकामनायें देते हुये कहा कि फाल्गुन माह की महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है ‘‘माघकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। ॥ शिवलिंगतयोद्रूतः कोटिसूर्यसमप्रभ’’॥ क्योंकि इसी दिन भगवान शिव और पार्वती जी का विवाह हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का तेजोमय दिव्य ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रादुर्भाव हुआ था इसलिये भी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि भक्ति एवं मुक्ति दोनों ही देने वाली है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और श्री दिनेश शाहरा जी ने महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर रूद्राक्ष के पौधों का रोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।
शिवरात्रि के दिन चंद्रमा से पृथ्वी पर अलौकिक शक्तियां आती हैं, जो जीवनीशक्ति में वृद्धि करती हैं इसलिये आज के दिन महामृत्युंजय मंत्र का जप करना फलदायी होता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि माँ पार्वती जी ने भगवान शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये त्रियुगी नारायण से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन साधना कर भगवान शिवजी को प्रसन्न कर उनसे आज के ही दिन विवाह किया था।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भगवान शिव निराकार व ओमकार ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं और शक्ति न केवल बह्माण्ड बल्कि सभी में समाहित है। शिव की सर्वोच्च चेतना और शक्ति की ऊर्जा के मिलन से सत्य को जानने का मार्ग प्रशस्त होता है। आज का पर्व शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है। यह पर्व सर्वत्र समानता, विविधता में एकता, समर्पण और प्रेम का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।
भगवान शिव के गले में सर्प, श्री गणेश का वाहन चूहा और श्री कार्तिकेय का वाहन मोर है, सर्प, चूहे का भक्षण करता है और मोर, सर्प का परन्तु परस्पर विरोधी स्वभाव होते हुये भी शिव परिवार में आपसी प्रेम है। अलग-अलग विचारों, प्रवृतियों, अभिरूचियों और अनेक विषमताओं के बावजूद प्रेम से मिलजुल कर रहना ही हमारी संस्कृति है और शिव परिवार हमें यही शिक्षा देता है।
भगवान शिव, आदि योगी है, योगेश्वर है और कल्याणकारी है। भगवान शिव ने जगत के कल्याण के लिये विष को अपने कंठ में धारण कर इस धरा को विषमुक्त किया। हमारे चारों ओर वातावरण में और हमारे विचारों में विष और अमृत दोनों व्याप्त हैं, अब यह हमारा दृष्टिकोण है कि हम  विष युक्त जीवन जियंे या अमृत से युक्त जियें। हम अपनी जिन्दगी को अमृत से भर लें या विष से भर दें। अगर हम जिन्दगी को विष से भरते है तो हमारा जीवन दिन प्रतिदिन कड़वा होते जायेगा और अगर हम जीवन को अमृत से भर दें तो जीवन दिन प्रतिदिन बेहतर होते जायेगा।
शिवरात्रि महापर्व हमें अपनी अन्र्तचेतना से जुड़ने, सत्य को जनाने, स्व से जुड़़ने तथा शिवत्व को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है। जीवन में आये विषाद्, कड़वाहट और दुख को पी कर आनन्द से परमानन्द की ओर बढ़ने का संदेश देती है। महाशिवरात्रि पूर्ण सत्य और आनन्द की प्राप्ति का महामंत्र है।
शिवरात्रि के अवसर पर परमार्थ निकेतन में उमंग, उत्साह और उल्लास के साथ शिवरात्रि महोत्सव मनाया। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने ड्रम, ढोल-नगाड़े की ताल पर कीर्तन करते हुये भगवान शिव की बारात निकाली। आईये इन्हीं दिव्य भावनाओं के साथ शिवरात्रि का पर्व मनाये और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लें।

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