सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
दस गुरुओं की अमृत-वानी
लगती एक कहानी
जिस नेक बन्दे ने समझने की ठानी
बैठे-बैठे हो गया समझो ज्ञानी
हाँ, नहीं यह एक कहानी
गाथा नवें गुरु तेगबहादुर जी की सुन
तुझको होगी अजब हैरानी।
दिल्ली के बादशाह
औरंगजेब का दिल्ली पर था शासन
कश्मीर के हिन्दू ब्राह्मण अनाथ बन दौड़े-दौड़े आए
सुनाया दुखड़ा कहा औरंगजेब के सूबेदार इफ्तिखार खान ने
जीना कर दिया हमारा दूभर
इस्लाम कबूलो या मौत दिया था खान ने अल्टीमेटम
संत गुरु तेगबहादुर जी ने बाँधा ढाढस
बोले रखो भरोसा मुझ पर
और घर जाओ सज्जनो-दुखियारो अपने वापस।
गुरुमाता यानी उनकी धर्मपत्नी गुज्जरी ने
नजदीकी सलाहकारों समेत गुरु को जी-जान से समझाया
पर भगवान स्वरूप सन्त गुरू ने केवल यह फरमाया
नौ साल के अपने पुत्र गोबिन्द को गद्दी का वारिस बनाया
बोले पत्नी से परमात्मा और नन्हे गोबिन्द को तुम्हारा रक्षक है बनाया
निकल पड़े फिर त्याग के मतवाले मानवता के रखवाले
सरहन्द के फौजदार ने गुरु को अपना बन्दी बनाया।
चार माह की कड़ी से कड़ी कैद में
गुरु को इस्लाम कबूलने को पल-पल था तड़फाया
बात ना बनती देखकर
औरंगजेब क पास दिल्ली पहुँचाया।
औरंगजेब ने खुद बन्धुओ अपने हाथों से
भगवान तेगबहादुर का सर धड़ से था उड़ाया
अन्तिम शब्द परमेश्वर-तुल्य गुरु के
जिसने जन्म लिया वह हर हाल में मौत पाएगा
मौत के डर से दुखी होना ईश्वर को ना भाएगा।
व्यस्त चाँदनी चौक में एक जगह पर
सर और धड़ थे फेंकवा डाले
रायसिना गाँव के एक भिश्ती ने सम्मान से
गुरु का धड़ था उठाया
अपनी घास फूस की झोपड़ी में पवित्र धड़ को था जलाया
दूसरे मानव एक रंगरेज ने पाक सर था उठाया
लेकर गया नन्हे गोविन्द के पास जिसे
दुख में डूबे लोगों ने सम्मान के साथ था जलाया
कश्मीर के पीड़ित पंडितों की रक्षा को गुरु ने था यह बलिदानी कदम उठाया।
-इति
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