-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा देश की जानी मानी धर्म यात्रा है। इस धर्माटक प्रदेश में पर्यटन के साथ-साथ धर्माटन की संभावनाएं बहुत अधिक हैं। इनका दोहन करके प्रदेश और देश की आर्थिक मजबूती में हाथ बँटाया जा सकता है। परन्तु धर्म पथों पर खच्चरों की अप्रत्याशित मौत का मामला चौंकाने वाला है। यदि यह सच है कि सैकड़ों धर्मयात्री वाहक ये मूक वाहन
अकाल मौत के मुँह में समा रहे हैं तो यह मामला बहुत गंभीर है। इसका तो एक ही कारण दिखता है कि इन खच्चरों की देखभाल की व्यवस्था में गंभीर खामियाँ हैं। उत्तराखण्ड के पर्यटन विभाग को इन मूक चौपायों के लिए चिकित्सक नियुक्त करने चाहिएं। जितना महत्वपूर्ण हेलीकॉप्टर है उतना ही महत्वपूर्ण मूक चौपाये हैं। फिर इनकी असमय मौत से इनके मालिकों को भी बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। धर्माटकों की असुविधा भी बढ़ती है। तीन तरह की इस हानि का जिम्मेदार कौन है। खच्चर पालकों को लेकर सरकार की यह बेरूखी चिंता पैदा करनी वाली है। इसका मतलब प्रदेश का पर्यटन विभाग सुस्त रफ्तार है। केवल खानापूर्ति में लगा है। अगर ऐसा नहीं है और खच्चर किसी खास बीमारी का शिकार हो रहे हैं तो यह बात खुलकर सामने आनी चाहिए। उत्तराखण्ड का पर्यटन विभाग चाहे तो उत्तराखण्ड को संसार में नम्बर वन पर्यटन और धर्माटन स्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया जा सकता है। दुनिया भर मेें नहीं तो कम से कम भारत में ही सही। भारत में नहीं तो कम से कम उत्तर भारत में ही सही। लेकिन यह मंजिल पाने के लिए कष्ट उठाना पड़ेगा। शायद, कष्ट उठाने के लिए राज्य का पर्यटन विभाग तैयार नहीं है। चलता है, चल रहा है, ऐसा ही चलेगा, यह नीति बदलनी पड़ेगी। अरे कम से कम देश के प्रधानमंत्री से तो कुछ सीखो। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से ही कुछ सीख लो। सीखने वाला सिखाने वाले से आगे निकल जाता है। कुछ करो, महज लफ्फाजी से कुछ नहीं होगा। एक कमर तो है आपके पास। इसे कसो और देश के लिए मेहनत करो। यहीं रह कर स्वर्ग की प्राप्ति होगी। -वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून