-वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून
-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के योग्य शिष्य हैं। वे आमरण अनशन के तीसरे दिन में प्रवेश कर चुके र्हैं। उनका तर्क बहुत दमदार है। वे अपने तर्क में यही कह रहे हैं कि जब शिवलिंग प्रकट हो चुके हैं तो भोग के बिना उनका यों कारावास में रहना हिन्दू सनातन परम्परा के खिलाफ है। हिन्दू सनातन परम्परा में भगवान त्रिलोचन के शिवलिंग को प्राणवान माना जाता है। क्योंकि शिवलिंग मन्दिर के अन्दर है। उसकी कभी न कभी प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। इसलिए शिवलिंग प्राणवान है। ऐसी स्थिति में बिना भोग पूजा के शिवलिंग का रहना भगवान त्रिलोचन का घोर अपमान है। हिन्दू इस अपमान को कैसे सहे। स्वामी जी केवल एक पहलू बार-बार उजागर कर रहे हैं। इस पहलू से उनके जायज हठ का दूसरा पहलू भी सामने आता है। जब जिला सिविल न्यायालय ने जाँच के आदेश दिए यानी सर्वे का आदेश दिया तो इस आदेश से यह सिद्ध हो जाता है कि न्यायालय अभी यह मानकर चल रहा है कि ना तो उस धार्मिक संस्थान को मंदिर कहा जा सकता है और ना ही मस्जिद। जब न्यायालय के हिसाब से यह स्थिति है तो फिर वहाँ नमाज क्यों जारी है। और अगर नमाज जारी है तो शिवलिंग की पूजा क्यों नहीं की जा सकती। हिन्दुओं पर यह अन्याय है। यदि न्यायालय की मानसिक स्थिति को समझा जाए तो हिन्दुओं पर किया जा रहा यह अन्याय संविधान के भी खिलाफ है। मुसलमानों को भारत में विशेष अधिकार देने की परम्परा देश के विनाश का कारण बनने जा रही है। अगर हम संविधान का सम्मान करते हैं तो मजहब और पूजा पाठ के आधार पर भेदभाव अमानवीय है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी भी शायद यही कहना चाह रहे हैं। वे संवाददाताओं को एक सूक्त दिखा रहे हैं जिसमें यह कहा गया है कि भगवान त्रिलोचन के शिवलिंग को भोग लगाए बिना भक्त भोग नहीं कर सकता। अर्थात् भक्त अन्न जल ग्रहण नहीं कर सकता। भक्त या तो प्राण दे सकता है या फिर सिर कटवा सकता है लेकिन भगवान त्रिलोचन के शिवलिंग पर भोग लगाए बिना जी नहीं सकता। स्वामी जी बार-बार जिला जज के अन्तरिम फैसले के प्रसंग में यह भी तर्क दे रहे हैं कि जब जज ने शिवलिंग की सुरक्षा का आदेश दिया तो उस आदेश के साथ शिवलिंग की पूजा का आदेश क्यों नहीं दिया। ऐसा अधूरा आदेश क्यों। इसमें दो मत नहीं कि स्वामी जी के इस तर्क में बहुत दम है। इस तर्क की कोई काट नहीं है। इसलिए स्वामी जी के अन्न जल ग्रहण ना करने के हठ को चुनौती देना नालायकी है। नासमझी और नपुंसकता है। हिन्दू को अगर अपने राष्ट्र में हिन्दू बन कर जीवित रहना है तो उसे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जैसे स्वामियों का साथ देना होगा अन्यथा मौजूदा हालात साफ-साफ इशारा कर रहे हैं कि आने वाले 100-150 वर्षो में हिन्दू समाप्त हो जाएगा। वैसे भी पिछले 10 हजार वर्षों से हिन्दू के समाप्त होने की प्रक्रिया चल ही रही है। ये वही स्वामी जी हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश के एक मंदिर में प्रवेश कर तुरंत यह तर्क दिया था कि श्रीराम और श्रीकृष्ण के मंदिरों में साईं का क्या काम है। स्वामी जी के इस तर्क में भी दम है। साईं को राम और कृष्ण के बराबर मानना या इनसे भी बढ़कर मानना एक ऐसी परम्परा चल रही है जो हिन्दू को विभाजित कर रही है और हिन्दू को विभाजित करने वाले लोग अपने षड़यंत्र में सफल हो रहे हैं। लिहाजा, हिन्दू होने के नाते हमें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी को गंभीरता से लेना ही होगा। वे हिन्दू के कल्याण के लिए स्वयं की देह का त्याग करने को तत्पर हैं। स्वामी जी को उनके श्री विद्या पीठ में बन्दी बना लिया गया है। पुलिस का सख्त पहरा है।