-अंतर्राष्ट्रीय अग्निशामक दिवस
ऋषिकेश (दीपक राणा)। अंतर्राष्ट्रीय अग्निशामक दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने हमारी सुरक्षा, हमारी संपत्ति की रक्षा, हमारे समुदायों, और हमारे जंगल की रक्षा करने वाले अग्निशमन टीम के सदस्यों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि हमेशा आपातकालीन सेवा का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी अधिकारियों को धन्यवाद, जो अपने प्राणों को संकट में डालकर दूसरों की सम्पति की रक्षा करते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी का वनों से किसी-न-किसी रूप में संपर्क रहा है। प्रत्येक प्राणी और मानव अपने जीवन और आजीविका के लिये प्रत्यक्ष रूप से पारिस्थितिक तंत्रों पर निर्भर रहता हैं। वृक्षारोपण, वनों का प्रबंधन और संसाधनों का सुरक्षित उपयोग जलवायु परिवर्तन को रोकने तथा वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों की समृद्धि व कल्याण में योगदान देने हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में गर्मी आते ही जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है और उत्तराखंड के जंगलों की यह आग हर वर्ष विकराल होती जा रही है, जिससे न केवल जंगल, वन्य जीवन और वनस्पतियों के लिये खतरे उत्पन्न होता है बल्कि सुलगते-धधकते पहाड़ी जंगलों का पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
जंगलों का धधकना कई तरह के संकटों को उत्पन्न करता है। वनाग्नि का बढ़ता संकट जंगली जानवरों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर देता है। इससे अमूल्य पर्यावरणीय संपदा को नुकसान होता है, वायु प्रदूषण और गर्मी की समस्या भी उत्पन्न होती है जिससे भी पर्यावरण प्रभावित होता है। ऐसे में हमारी अग्निशामक टीम वरदान बनकर आती है और मानवीय व प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है।
स्वामी जी ने कहा कि जगंलों में बढ़ती आग के प्रति सभी को संवेदनशील होना होगा। जंगल धू-धू कर जलते रहते हैं, वन संपदा खाक हो जाती है ऐसे में हम मूकदर्शक बनकर नहीं बैठ सकते इसके लिये हम सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। जंगलों की आग से निबटने के लिये सभी पहलुओं पर गंभीरता से ध्यान देते हुये आग बुझाने के उपकरणों और अग्निशामक टीम के साथ हम सभी को भी वनों और प्राकृतिक संपदा का रक्षक बनना होगा।