मथुरा बृंदावन की याद में
नेशनल वार्ता ब्यूरो
मथुरा बृंदावन के चप्पे-चप्पे पर कन्हैया की छाप है। जो एक बार मथुरा बृंदावन हो आए तो फिर उससे तो रहा ही न जाए। कदम-कदम पर कन्हैया की याद गुँथी हुई है। ग्वाले गोपियाँ कदम्ब के पेड़ और जमुना वाह क्या कहना। श्रीराम के बाद श्रीकृष्ण ही वह विराट व्यक्तित्व हैं जिन्होंने पूरे संसार को हृदय में धारण किया था। जो पूरे संसार की चिंता करते थे। जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व की छाप वेदों, उपनिषदों, पुराणों, अरण्यकों और महाग्रंथ महाभारत में विराजमान है। अब अगर श्रीराम की तरह श्याम को भी काल्पनिक कह दिया जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। क्योंकि भारत न तो कभी महान था और न कभी महान होगा। महान तो वे हैं जिन्होंने एक हजार साल भारत को दास बनाकर रखा। खैर, मथुरा बृंदावन का चप्पा-चप्पा भारतीय सनातन संस्कृति की बीती कहानी खुद कह रहा है। वहाँ श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर कंस के वध तक सारे साक्ष्य यहाँ-वहाँ महसूस किए जा सकते हैं। जमुना के किनारे नन्द गाँव का सुन्दर सरोवर अपने हरे पानी के रंग में कन्हैया के जन्म की कहानी बयाँ कर रहा है। मथुरा क्षेत्र में हर जगह कन्हैया विराजमान हैं। फूल पत्तियों में भी श्रीकृष्ण विराजमान दिखाई देते हैं। गोबर्धन पर्वत वहाँ आज भी विराजमान है जिसकी परिक्रमा करके श्रद्धालु धन्य-धन्य हो जाते हैं। राधा रानी और श्रीकृष्ण के प्रेम की गाथाएं वहाँ वैसे तो हर जगह महसूस होती है किन्तु प्रेम मन्दिर में जाकर तो श्रद्धालु को ऐसा लगता है जैसे वह राधा कृष्ण के साक्षात् दर्शन ही कर रहा हो। क्या नहीं है मथुरा बृंदावन में। थोड़़ा आगे चलें तो बरसाने में कन्हैया की लीलाओं से साक्षात्कार हो जाता है। मथुरा के पेड़ों (मिठाई) की मिठास जीभ से हटती ही नहीं। अगर कोई विदेशी इस इलाके में आ जाए तो वह राधे-राधे में खो जाता है। कई विदेशी तो महीनों रूक कर श्रीकृष्ण को समझने की कोशिश करते हैं। उनके विराट दर्शन को जानकर भारतीय सनातन संस्कृति से गदगद हो जाते हैं। कई विदेशी महिलाएं तो कृष्ण भक्त बनकर ही लौटती हैं। ऐसा है कमाल कन्हैया की जन्म भूमि का। क्या हमारे कन्हैया की जन्म भूमि मुक्त होगी। क्या उन्हें भूमि का वह टुकड़ा मिल पाएगा जहाँ वे जन्मे थे। क्या सैक्युलर देश में करोड़ों के आराध्य श्रीकृष्ण के भक्तों के साथ न्याय होगा।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार, देहरादून।
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