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हादसों से कोई सबक नहीं ले रहा है स्कूल प्रशासन?

*सीपीयू की सूझ बुझ ने बचायी नन्ही जाने*

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अर्जुन सिंह भंडारी
देहरादून: देश के अखबार और टीवी चैनलों की सुर्ख़ियों पर गौर करे तो बीते ही दिनों हमारे देश को कितने हादसों ने दहला दिया जहाँ छोटे बच्चों को किन्ही न किन्ही अनदेखी की वजह से हादसों का शिकार होना पड़ा है और अपनी जान गवानी पड़ी। बीते कुछ दिनों पहले हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में जहाँ ड्राईवर की लापरवाही व बद्दतर सड़क की बदौलत 24 स्कूली बच्चों ने अपनी जान गवाई वही बीते हफ्ते उत्तर प्रदेश के कुशीनगर क्षेत्र में ड्राईवर के कानों में हैडफ़ोन लगे होने के चलते कई बच्चों ने अपनी ज़िन्दगी गवाई।  आज उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित एमकेपी कॉलेज में भी कुछ ऐसा ही वाक्या दोहराया जाता अगर समय रहते अपनी

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सूझ बुझ के चलते उस क्षेत्र में पेट्रोललिंग पर मौजूद सीपीयू ऑफिसर कांस्टेबल अनुराग कौशल मौके पर स्कूली बच्चों से भरे हुए ऑटो को न रोकते । सीपीयू ऑफिसर अनुराग का ध्यान उस वक़्त सिग्नल पर बच्चों से भरे ऑटो ड्राईवर द्वारा शराब पिए होने की गंध ने खिंचा। उनके ड्राईवर को रोकने पर ड्राईवर किशनचंद(50) द्वारा उनसे झगड़ा किया गया व गली -गलौच की गयी। जिससे वहां मौजूद सी पी यू ऑफिसर अनुराग ने उन्हें पकड़ लिया व अन्य अधिकारियों को सूचित किया व साथ ही अल्कोहॉलिक मीटर जाँच के आधार पर ऑटो ड्राईवर का आधी बोतल करीब शराब पिया होना पता चला, जिस बाबत उनके द्वारा उस व्यक्ति को शराब पीकर गाड़ी चलाने के सम्बन्ध में डालनवाला थाने पुलिस को सौप दिया। सीपीयू ऑफिसर कांस्टेबल अनुराग के मुताबिक ड्राईवर किशनचंद से ढंग से खड़ा भी नहीं होया जा रहा था और अगर उससे रोक न जाता तोह आगे जाकर कोई हादसा हो सकता था।देखा जाये तो सीपीयू कांस्टेबल अनुराग की वजह से आज एक बहुत बड़ा हादसा होने से टल गया। गौर करने वाली बात अब यह की इतने सब हादसों की बाद भी शहर के स्कूल प्रशासन होश में आने को क्यों तैयार नहीं है। जिस वक़्त यह हादसा हुआ उस वक़्त वह ड्राईवर बच्चों को स्कूल से घर ला रहा था। यह स्कूल की जिम्मेदारी भी बनती है की अगर स्कूल के बच्चे किसी निजी वाहन के बजाये एक गाड़ी में सवार होकर या स्कूल की तरफ से लगायी गाड़ी में सफ़र करते है तो उसका चालक व परिचालक अपनी जिम्मेदारी समझने वाला होना चाहिए। सिर्फ एनसीईआरटी की किताबे लागू करने के विरोध में कई स्कूल और उस मुद्दे को बच्चों के भविष्य से जुड़ा होना बताया पर यह तो ज़िन्दगी से जुड़ा मुद्दा है,तो बच्चों की ज़िन्दगी से जुड़े मुद्दों में क्यों ऑंखें मूंदे खड़ा है?इतनी सी बात जानने में स्कूल किन हादसों का इंतज़ार कर रहा है?


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