-विश्व रजोनिवृत्ति दिवस (इंटरनेशनल मेनोपॉज डे)
ऋषिकेश (दीपक राणा)। विश्व रजोनिवृत्ति दिवस वैश्विक स्तर पर महिलाओं के स्वास्थ्य और रजोनिवृत्ति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये मनाया जाता है। रजोनिवृत्ति उम्र बढ़ने का एक स्वाभाविक हिस्सा है, लेकिन इससे निपटना कई बार मुश्किल हो जाता है। महिलाएं जब रजोनिवृत्ति से गुजरती हैं तो गर्म फ्लश, रात को पसीना, चिंता या अवसाद जैसे लक्षणों का अनुभव करती हैं परन्तु ये लक्षण सभी महिलाओं में एक जैसे नहीं होते हैं, कुछ महिलाओं को तो बिल्कुल भी पता नहीं चलता है और रजोनिवृत्ति हो जाती हैं।
मासिक धर्म शुरू होने के वर्षों बाद हड्डियों के घनत्व का स्तर कम होने लगता है जिसके कारण पोस्टमेनोपॉजल से महिलायें अधिक प्रभावित होती है तथा ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्यायें भी हो सकती हैं जिसका शीघ्र निदान और उपचार करना जरूरी होता है, आज का दिन रजोनिवृत्ति से संबंधित अपने अनुभवों पर खुलकर बात करने का मौका देता है।
मेनोपॉज एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। एस्ट्रोजेन हार्मोन मुख्य रूप से अंडाशय में उत्पादित एक हार्मोन है जो शरीर में कई कार्यों को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार है। महिलाओं में किशोरावस्था के बाद से ही दायीं या बायीं ओवरी से हर महीने एक अंडे का उत्पादन (ओव्यूलेशन) होता है। जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, उनके अंडाशय में स्थित अंडे स्वाभाविक रूप से कम होने लगते हैं। रजोनिवृत्ति तब होती है जब अंडाशय, अंडे का उत्पादन बंद कर देते हैं और शरीर के एस्ट्रोजन का स्तर गिर जाता है जिसके कारण शरीर में कई बदलाव हो सकते हैं और पीरियड्स भी नहीं आते इसे ही मेनोपॉज कहा जाता है।
आज विश्व रजोनिवृत्ति दिवस के अवसर पर देश की नारी शक्ति का आह्वान करते हुये परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि मासिक धर्म केवल महिलाओं का विषय ही नहीं है बल्कि इससे पूरे परिवार और सम्पूर्ण राष्ट्र का स्वास्थ्य भी जुड़ा हुआ है। ‘‘देवी स्वस्थ तो देश स्वस्थ’’ इस पर चर्चा इसलिये भी जरूरी है क्योंकि यह हमारी बेटियों के जीवन का फुलस्टाप बनता जा रहा है। हमारे देश के कुछ हिस्सों में लड़कियां किशेरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते स्कूल छोड़ देती हैं। लड़कियों का एक बड़ा आंकडा है जो माहवारी के दौरान उन 5 से 7 दिनों तक स्कूल नहीं जाती, इसलिये यह चिंतन का नहीं बल्कि एक्शन का विषय है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि माहवारी महिलाओं के स्वास्थ्य का एक प्रमुख विषय है। महिलायें अपने जीवन के तीन हजार से अधिक दिन माहवारी पीरियड में गुजारती है इसलिये उन तीन हजार दिनों का अर्थात् उसके जीवन के सात से आठ वर्षो का प्रबंधन ठीक से किया जाना नितांत आवश्यक है तथा उसके पश्चात रजोनिवृत्ति और उसके लक्षणों को जानना व उनसे निपटने के लिये महिलाओं को मानसिक रूप से तैयार करना जरूरी है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि आईये आज इंटरनेशनल मेनोपॉज डे के अवसर पर संकल्प लें कि हम माहवारी के विषय में चुप्पी नहीं बरतेगे। चुप्पी तोड़ेंगे अपनी बहनों को जोडे़ंगे।