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सूचना का अधिकार कैदियों का नया हथियार बना

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नई दिल्ली । इस मौसम में क्यों हमें नींबू नहीं दिया जा रहा है? क्या हम सुबह दो ग्लास दूध पीने के हक़दार है? और कितने दिन बाद हमें छोड़ दिया जाएगा? क्यों हमें मच्छरों भगानेवाला मॉस्क्यूटो क्वाइल नहीं दिया जा रहा है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन्हें दिल्ली के तिहाड़ जेल में सज़ा काट रहे कैदियों ने सूचना के अधिकार (राइट टू इनफॉर्मेशन एक्ट) का इस्तेमाल कर जेल प्रशासन से पूछा है। जेल मुख्यालयों जहां पर कई सीनियर अधिकारी रहते हैं और प्रशासनिक कार्य होता है वहां पर औसतन रूप से रोजाना ऐसे दो आरटीआई लगाई जा रही है। दिसंबर के महीने में करीब 70 से ज्यादा आवेदन लगाए गए थे। जबकि, जनवरी में ऐसे 59 आरटीआई आवेदन लगाए गए। कैदियों को आरटीआई की फीस देने से छूट दी गई है। ज्यादातर कैदी आरटीआई का इस्तेमाल उनके अपने जेल का समय, उन्हें मिलने वाली सुविधाएं या फिर नहीं मिली सुविधिओं के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए लगाते हैं। देश की सबसे ज्यादा कैदियों वाली इस जेल में कम से कम इस वक्त 14 हजार 5 सौ कैदी बंद हैं। जो कैदी पहली बार जानकारी चाहते है उसके लिए मदद मिलने में वहां पर कोई दिक्कत नहीं है। नाम ना बताने पर एक सीनियर तिहाड़ जेल ऑफिसर के हवाले से बताया है कि तंदूर मर्डर केस में अपनी पत्नी की हत्या का सज़ा काट रहे पूर्व कांग्रेस युवा अध्यक्ष सुशील शर्मा एक ऐसे हाइप्रोफाइल कैदी हैं जो जेल के अंदर बंद कैदियों को आरटीआई की जानकारी कैसे हासिल की जाए इस बारे में बताते हैं।


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