पाठशाला
बच्चों की पौधशाला है।
इस पौधशाला को
ऊपर से पाला मार रहा है
नीचे फँफूदी डस रही है।
अवैज्ञानिक-अमनोवैज्ञानिक तरीके से
तय पाठ्यक्रम और विषयों की भरमार
सीधे बारहवीं तक
बच्चों की पौध को
मानसिक और शारीरिक तौर पर
पंगु और बीमार बना देती है।
अवसरवाद और लूटवाद की कुनीति पर
धड़ल्ले से दौड़ रही
सरकारी-गैर सरकारी पाठशालाओं में
अयोग्य-अकुशल और अराजक फटीचर-राज
मेरे देश की इस पौध पर
पराबैंगनी किरणें बनकर कबाड़ा कर रहा है,
भावी फसल को कुंठाग्रस्त होने से बचाने पर
किसी का ध्यान नहीं है।
ट्यूशन की मजबूरी
ट्यूशन की लत बन चुकी है
ट्यूशन-बाज अधिकतर शोषक फटीचर राज का
विस्तार मात्र हैं।
महाविद्यालयों-विश्व विद्यालयों में
अध्ययन-अध्यापन शोध-शुद्धीकरण पर जोर की जगह
जवान हो चुकी बीमार पौध के राजनीतिकरण का शोर है।
प्राचीन काल में
विद्या की राजधानी रहा देष
दिशाहीन,जड़ और नकलवादी बन कर रह गया है,
तभी तो प्रगतिवाद के नाम पर
फूहड़ता और देश प्रेम हीनता का बोलबाला है।
Virendra Dev Gaur
Chief Editor (NWN)