-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
मुम्बई टु गोवा एक फिल्म बनी थी। यह बम्बइया फिल्म हँसी मजाक वाली थी। लेकिन अभी जो फिल्म चल रही है वह बम्बई की फिल्म तो है लेकिन इसे बम्बई के फिल्मकारों ने नहीं बनाया है। इस फिल्म के भी डायरेक्ट्रर और निर्माता हैं। इसमें दर्जनों कलाकार काम कर रहे हैं। ये कलाकार बहुत अच्छे अदाकार हैं। सब अच्छा अभिनय कर रहे हैं। इसके अभिनेता मूल रूप से महाराष्ट्र के विधायक हैं जो पहले सूरत गए और वहाँ से गुवाहाटी चले गए। फिल्म के सेट मुम्बई और गुवाहाटी में लगे हुए हैं। फिल्म का सजीव प्रसारण चल रहा हैं। यह फिल्म हिट है। क्योंकि इस फिल्म की कहानी फिट है। इसमें दो मत नहीं कि उद्धव ठाकरे ने दिल और दिमाग से खुद को कांग्रेसी बना लिया था। कांग्रेसियों और राष्ट्रवादी कांग्रेसियों में जरा भी अंतर नहीं है। दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। उद्धव यह सोच रहे थे कि सभी शिवसैनिक भेड़-बकरियाँ हैं। जिन्हें वे मर्जी से हाँक सकते हैं। लेकिन एकनाथ शिंदे ने साबित कर दिया कि वे न भेड़ हैं और न बकरी। वे विधायक हैं और उद्धव के द्वारा चल रही कांग्रेसियों की चाटुकारिता से तंग आ चुके हैं। एकनाथ शिंदे भाजपा के साथ सरकार बनाना चाह रहे हैं। इस फिल्म का यही क्लाईमेक्स होना है। हो सकता है कल-परसों तक फिल्म का अंतिम सीन देखने को मिल जाए। उद्धव ठाकरे ने अपने चमचे संजय राउत के कहने पर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के सामने घुटने टेके हुए थे। वे शिवाजी के सामने नतमस्तक नहीं थे वे तो कुर्सी के लिए सोनिया और शरद पवाँर के सामने नतमस्तक थे। आतताई तीन पहियों की सरकार को तो कभी न कभी गिरना ही था। जिस सरकार में हनुमान भक्तों को जेल में प्रताड़ित किया गया हो और पत्रकारों को अपमानित किया जा रहा हो। जो सरकार राष्ट्रीय मुद्दों से लगातार समझौते कर रही हो। जिसके राज में देश को नुकसान पहुँचाने वाले तत्व फलफूल रहे हों और उन्हें कुछ भी करने की छूट हो। ऐसी सरकार का खात्मा जरूरी है।