परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी ने प्रवासी भारतीयों के साथ आइसलैंड में भारत की आज़ादी का जश्न मनाया। राष्ट्रीय ध्वज की महिमा, गौरव और गरिमा के विषय में जानकारी देते हुये स्वामी जी ने कहा कि ‘कहीं उड़ने दो परिंदे कहीं उगने दो दरख्त’ निदा फाजली की यह खूबसूरत पंक्तियाँ विकास और स्वतंत्रता के मध्य अद्भुत समन्वय की अभिव्यक्त करती हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि स्वतंत्रता का आशय केवल हमारी आजादी से ही नहीं है बल्कि पूरे राष्ट्र के लिये स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण है यह इतिहास के पृष्ठों में बखूबी बयाँ किया गया हैं। स्वतंत्रता की जरूरत जितनी हमें है उतनी ही प्राणियों, पक्षियों एवं पेड़ पौधों को भी होती है। पिंजरे में बंद पंछी जब दूर आसमान में उड़ते हुए दूसरे पंछी को देखते हैं तब उन्हें स्वतंत्रता का मूल्य समझ में आता हैं। ऐसे ही जब पेड़-पौधों की प्रजातियों को भरपूर स्वतंत्रता दी जाये तो उससे विशाल वन और अनगिनत प्रजातियों की उत्पत्ति हो सकती है। स्वतंत्रता के द्वारा ही नई सोच, नए विचार, कला, नित नए उत्पादन, जीवन की गुणवत्ता और प्रगति के सर्वोत्तम मार्गों का विकास होता है। स्वतंत्र वातावरण में ही कोई भी राष्ट्र प्रगति के सर्वोच्च शिखर पर जा सकता है। देश और देशवासियों के सर्वांगीण विकास के लिये स्वतंत्रता नितांत आवश्यक है। जिस प्रकार एक व्यक्ति का अधिकार या उसकी स्वतंत्रता दूसरे व्यक्ति के अधिकारों या उसकी स्वतंत्रता में बाधक नहीं होना चाहिए। उस प्रकार हमारी स्वतंत्रता प्रकृति और पर्यावरण के विकास में भी बाधक नहीं होनी चाहिये। हम सभी को अपने जीवन की इस दौड़ में दो पल ठहर कर पीछे जरूर देखना चाहिये की हमने क्या खोया और क्या पाया। आजादी का जश्न ऐसा हो जिसमें सभी आजाद हों। स्वामी जी के पावन सान्निध्य में सभी अनुयायियों ने स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर प्रकृति, संस्कृति और संतति की रक्षा का संकल्प लिया।