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जहां आस्था है वहीं रास्ता है -स्वामी चिदानन्द सरस्वती

-प्रकृति वंदन से संस्कृति वंदन की यात्रा

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देहरादून/ ऋषिकेश (दीपक राणा)  । परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने हिन्दू आध्यात्मिक और सेवा फाउंडेशन द्वारा आयोजित ’प्रकृति वंदन’ वेबिनार के माध्यम से देशवासियों को पौधों के रोपण एवं संवर्द्धन का संदेश दिया। 

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ’’ये केवल प्रकृति वंदन ही नहीं बल्कि संस्कृति वंदन भी है। वेद का मंत्र है ’’माताभूमिः पुत्रोऽहं पृथ्व्यिाः।’’ धरती हमारी माँ है और हम उसके बच्चे हैं। हमारी प्रकृति, प्रभु का स्वरूप है, हमारी प्रकृति जुड़ी है हम सब से और हम सब जुड़े हैं इस दिव्य प्रकृति से; प्रभु से। ईश्वर ही पूरी सृष्टि में समाया है और यही समझ ही जीवन का सार है। सत्य तो यह है कि प्रकृति, ईश्वर का ही स्वरूप है। हर कण में और हर क्षण में ईश्वर समाया है, इसलिये यह केवल प्रकृति वंदन नहीं बल्कि प्रभु का वंदन है; परमेश्वर का वंदन है, जिस दिन यह भाव समझ में आ जाता है उस दिन ’’पत्ते-पत्ते में है झांकी भगवान की, किसी नूर वाली आंख ने पहचान की।’’ यह भाव जग जाता है और यह भाव बड़ा ही अद्भुत है, इसी भाव ने ही इस देश को बांध कर रखा है। ये श्रद्धा की कड़ियां; ये भावना की कड़ियां, केवल व्यक्ति को ही नहीं बल्कि पूरी सृष्टि को बदल देती हैं। ये व्यष्टि से समष्टि की यात्रा है। आज का यह प्रकृति वंदन, आस्था की यात्रा है; श्रद्धा की यात्रा है और भावनाओं की यात्रा है। जहां आस्था है वहीं रास्ता है। आज का यह प्रकृति वंदन, संस्कृति वंदन बने, प्रभु अभिनन्दन बने। आज प्रकृति वंदन के अवसर पर हम यह संकल्प लें कि पौधों तो लगायें उनका पूजन करें परन्तु लगे रहेेेे इसका भी ध्यान रखें।

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति वंदन, पेड़ों के संरक्षण की यात्रा है; सवंर्द्धन की यात्रा है; सजगता की यात्रा है। सच माने तो यह सब से जुड़ने और जोड़ने की यात्रा है और यही यात्रा के संकल्प हमारे जीवन की प्रकृति बन जाये। अपनी प्रकृति के संरक्षण हेतु अपने समय का बलिदान करें। अपना टाईम, अपना टैलेंट, अपनी टेक्नोलाॅजी, अपनी टेनासिटी राष्ट्र के लिये समर्पित कर दें, प्रकृति और प्रभु को समर्पित कर दें। उन्होंने कहा कि ’’राष्ट्र हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखें।’’ मेरी प्रकृति इस विशाल प्रकृति से जुड़ जायें और हम एक हो जायें; एक साथ हो जायें यही तो है प्रकृति वंदन।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि ’प्रकृति वंदन’ हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउण्डेशन की उत्कृष्ट और अनुकरणीय पहल है। हमारे देश का यह सौभाग्य है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में श्रद्धेय डाॅ हेडगेवार जी एवं श्रद्धेय गुरूजी से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक, ऋषि माननीय मोहन भागवत जी तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार के सभी सदस्यों में सेवा, सयंम और समर्पण का अद्भुत संगम हैं। अद्भुत संस्था, अद्भुत लोग। कोरोना हो या सुनामी या कोई भी आपदा क्यों न हो, हर पल संघ का हर स्वंयसेवक, समर्पण भाव से सेवा हेतु तत्पर रहता है। कोरोना के समय में भी अपनी और अपने परिवार की चिंता न करते हुये अपने देशवासियों की सेवा में सर्वस्व समर्पण करना, सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण है। यही संघ का उद्देश्य है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि पेड़-पौधे ईश्वर की अभिव्यक्तियाँ हैं, उनके प्रति हमारे मन में जिम्मेदारी का अहसास हो। पेड़-पौधे को केवल लगाये ही नहीं बल्कि वें लगे रहें इसकी भी जिम्मेदारी लें। आज हम सभी ने पौधों का पूजन किया, प्रकृति की सम्पन्न्ता और समृद्धि हेतु संकल्प लिया, आईये इस पर अमल करें और धरा को हरा-,भरा बनायें रखने हेतु योगदान प्रदान करें।

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